❤❤Art and Expression कला और अभिव्यक्ति ❤❤
कला मानवता के हृदय का गुण हैं। कला मानव के मस्तिष्क की अभिव्यक्ति हैं। कला के कई रूप हैं जिसके माध्यम से व्यक्ति अपनी अभिव्यक्ति करता हैं।
कला के इतिहास पर नजर डाले तो हम पाते हैं कि कला कभी स्वन्त्रता से शुरू हुई लेकिन बहुत से बंधनो में पड़ गई। कभी यह प्रभावशाली व्यक्तियों के प्रभाव में रही तो कभी धर्म के बंधन में जकड़ गई। जैसे मध्यकाल में कला धर्म के बंधन में जकड़ी रही।
पुनर्जागरण काल वास्तव मेंं कला के बंधन से मुक्त होने का काल था। इसमें सर्वप्रथम कला मुक्त हुई थी। इसलिए कला का सच्चा स्वरूप वह हैं जिसमें जीवन की अभिव्यक्ति हो। कला की स्वतन्त्रता आवश्यक हैं। यदि कला स्वतन्त्र हो तो उसमें जीवन की अभिव्यक्ति अवश्य होगी।
यही एक सच्चे कलाकार की निशानी हैं। चाहे हम बाघ की गुफाओं की चित्रकारी देखे या अजन्ता की। चाहे खजुराहो के मंदिर देखे या शेक्सपियर की साहित्यिक रचनायें या पंडित विष्णु शर्मा का पंचतन्त्र। जब जब भी कला का विषय जीवन की अभिव्यक्ति और मानवता बना, कला का सच्चा स्वरूप निखरकर सामने आया। इसलिए हम कह सकते हैं कि सच्ची कला जीवन की अभिव्यक्ति हैं।
हाल ही में संपन्न हुए भारतीय कला सम्मेलन, दिल्ली में आये हुए लोगों के द्वारा प्रदर्शित कैनवस जो आत्मा की भाषा बोल रहे थे, की अधिकता को देखते हुए ऐसा लगता है कि वे लोग एन्जली इला मेनन से सहमत नहीं हैं। कुछ कैनवस खुलकर धार्मिक विषयों को जताते थे और कुछ केवल अनन्त के साथ समीकरण का एक संकेत प्रदान करते थे। महान कलाकार सैयद हैदर रज़ा, जिनका आध्यात्मिक और अन्य सांसारिक विषयों में विकसित परिप्रेक्ष्य अलग ही चमकता है - विशेष रूप से उनकी बिंदु तस्वीरों की श्रृंखला में और अन्य कलाकृतियों में भी, पर इनके अलावा अन्य कलाकारों ने भी अपनी कलाकारी में आध्यात्मिक और अन्य सांसारिक विषयों को व्यक्त किया है। उदाहरण के लिए, सीमा कोहली, जिनका काम ग्रीक पौराणिक चरित्र ‘औरोबोरस’ से प्रेरित था जिसमें – एक सांप को अपनी ही पूंछ निगलने की कोशिश करते दिखाया गया है - जो एक जन्म और पुनर्जन्म की अंतहीन चक्र का रूपक है, जो अनंतता को भी दर्शाता है। "
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By anonymous medieval illuminator; uploader Carlos adanero - Fol. 279 of Codex Parisinus graecus 2327, a copy (made by Theodoros Pelecanos (Pelekanos) of Corfu in Khandak, Iraklio, Crete in 1478) of a lost manuscript of an early medieval tract which was attributed to Synosius (Synesius) of Cyrene (d. 412).The text of the tract is attributed to Stephanus of Alexandria (7th century).cf. scan of entire page here., Public Domain, https://commons.wikimedia.org/w/index.php?curid=2856329
कला के बारे में सबसे आम धारणा है कि यह अनिवार्य रूप से अभिव्यक्ति का एक रूप है, भावनाओं की अभिव्यक्ति। यह विचार इतना सामान्य है कि इसे अक्सर छात्रों, आलोचकों और कलाकारों द्वारा सच मान लिया जाता है। टॉल्स्टॉय का विचार: कला कुछ बाहरी संकेतों के माध्यम से कलाकार से दर्शक तक भावनाओं का संचार है। इनके अनुसार कलाकार भावनात्मक अनुभवों से प्रेरित होता हैं। जो शब्द, पेंट, संगीत, गति आदि के साथ अपने कौशल का प्रयोग करें। दर्शकों में विशेष भावना को उत्तेजित करने की दृष्टि से कलाकार कलाकृतियों में अपनी उसी विशेष भावनाओं को शामिल करता है ।
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क्रोचे कला के लिए अनिवार्य रूप से अंतर्ज्ञान को महत्व देते है- "जो सहज ज्ञान को सुसंगतता और एकता देता है वह गहन भावना है। अंतर्ज्ञान वास्तव में ऐसा है क्योंकि यह
एक तीव्र भावना व्यक्त करता है और तभी उत्पन्न हो सकता है जब बाद वाला उसका स्रोत और आधार हो। यह एक विचार नहीं, बल्कि तीव्र भावना है जो कला के प्रतीक को अलौकिक प्रकाश प्रदान करती है।''
उन्नीसवीं शताब्दी के उत्तरार्ध में शुरू हुयी, अभिव्यंजनावादी कला आंदोलन आधुनिक काल में और अधिक शक्तिशाली अभिव्यंजक प्रभावों की खोज में कला के प्रकृतिवादी या नैसर्गिक्तावादी दृष्टिकोण का त्याग करने के लिए तेजी से तैयार थे। हालांकि एडवर्ड मंक की द स्क्रीम चित्र में अग्रभूमि में बनी आकृति में अभिव्यंजक शारीरिक भाषा शामिल है, पेंटिंग में औपचारिक विकृतियों के निर्माण से भावनात्मक आवेश काफी हद तक प्रदर्शित किया जाता है। अभिव्यक्ति ने मुख्य सौंदर्य लक्ष्य के रूप में प्रकृतिक रुपवाद का स्थान ले लिया है।
दर्शक पहले कलाकृति के तीखे रंग, टेक्सचर, और उल्टी-सीधी लहरदार संयोजन में रचना की अभिव्यंजक शक्ति पर प्रतिक्रिया करते हैं, जिसे उस बिंदु तक बढ़ा-चढ़ाकर पेश किया गया है जहां नैसर्गिक चित्रित दृश्य अब प्रशंसनीय नहीं है। आधुनिक काल में कला-रूप की अभिव्यंजक शक्ति के रूप में - रंग, रेखा, आकार, रचना, आदि को विशेष महत्व प्राप्त हुआ।
इस प्रकार कला अभिव्यक्ति व्यक्ति के आंतरिक भावों का प्रकटीकरण भी होता है जो दर्शकों को सामान्य भावा अनुभूति कराती है।
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