Fundamental concept of Indian Aesthetics
भारतीय सौंदर्य शास्त्र की अवधारणा
प्रकृति में सभी जगह सौन्दर्य विद्यमान है। सौंदर्यशास्त्र (Aesthetics) मनुष्यों के संवेदनात्मक-भावनात्मक गुण-धर्म और मूल्यों अदि का अध्ययन है। कला, संस्कृति और प्रकृति का प्रति अंकन ही सौंदर्यशास्त्र है। सौंदर्यशास्त्र, दर्शनशास्त्र का एक अंग है। इसे सौन्दर्यमीमांसा तथा आनन्दमीमांसा भी कहते हैं।
सौन्दर्यशास्त्र वह शास्त्र है जिसमें कलापूर्ण चित्रों, मूर्तियों या अन्य कृतियों, रचनाओं आदि से अभिव्यक्त होने वाला अथवा उनमें निहित रहने वाली सुन्दरता का तात्विक, दार्शनिक और मार्मिक जाँच पड़ताल होता है।
सुन्दर वस्तु की प्रशंसा
किसी सुंदर वस्तु को देखकर हमारे मन में जो आनन्ददायिनी अनुभूति होती है उसके स्वभाव और स्वरूप का विवेचन तथा जीवन की अन्यान्य अनुभूतियों के साथ उसका समन्वय स्थापित करना इनका मुख्य उद्देश्य होता है। .
नाट्यशास्त्र नामक ग्रन्थ ने भाव और रस के सिद्धांत का परिचय दिया, जो कि भारतीय सौंदर्यशास्त्र का केंद्र बिंदु हैं। भारतीय काव्य और नाट्यशास्त्र के लिए रस की अवधारणा अद्वितीय है जो भारतीय मनीषी भरत मुनि के द्वारा प्रतिपादित की गयी है।
bhArtiyA Saundarya shastra |
Aesthetics of Graffiti Wall Painted By S K Nag |
See the Beauty Of Nature in Watercolor |
रस मूल रूप से संख्या में 8 थे, लेकिन नाट्यशास्त्र के बाद की परंपरा में अभिनवगुप्त के द्वारा इसमें नौवां भाग भी जुड़ा। ये आठ रस श्रृंगार (श्रृंगारः), हास्यकारक (हास्यं), दया (कारुण्यं), उग्र (रौद्रं), वीरता (वीरं), भयानक (भयनाकं), घृणा (बिभत्सं), अद्भुत (अद्भूतं) और शांतचित्त (शांत) हैं।
रस के स्वाभाव, गुण और उनके देवता
श्रृंगार रस प्रेम और आकर्षण को प्रदर्शित करता है, जो भगवान विष्णु को और श्याम वर्ण को इंगीत करते हैं। भगवान विष्णु श्रृंगार रस के देवता माने जाते हैं और इसे चित्र में श्याम वर्ण से प्रदर्शित करते हैं।
हास्यं रस हँसी को प्रदर्शित करता है, इसके देवता भगवान शिव और इसे सफेद रंग से प्रदर्शित करते हैं।
करुण रस, दया और क्षमा को प्रदर्शित करते हैं, इसके आराध्य देव भगवान यम माने जाते हैं और इसे धूसर वर्ण ग्रे (Gray) रंग से दिखे जाता हैं
Beauty of Ston Craft Idol "Lord Ganesha" |
इसी प्रकार रौद्रं रस, आक्रोश या क्रोध को प्रदर्शित करता है, जो भगवान शिव और लाल रंग का परिचायक हैं। शौर्य या वीरता को प्रदर्शित करता हुआ वीर रस है, जिसके लिए भगवान इंद्र और केसरी रंग हैं।
भयानकं रस, भयानक, डर या आतंक को प्रदर्शित करता है जो भगवान यम और काले रंग को संदर्भित करता है। बीभत्सं रस, घृणा या अरूचि को प्रदर्शित करते हैं, यह भी भगवान शिव और नीले रंग से प्रदर्शित करते हैं।
अद्भुतं रस आश्चर्य को दिखाता है यह भगवान ब्रह्मा और पीले रंग को संदर्भित करते हैं। इसी प्रकार से शांत रस शांति या संतोष को प्रदर्शित करता है जो भगवान विष्णु और सफेद रंग को प्रकट करते हैं।
नाट्यशास्त्र में भरत मुनि ने रस की व्याख्या करते हुये कहा है कि विभाव, अनुभाव, एवं संचारी भाव के संयोग से रस की निष्पत्ति होती है। हृदय का स्थायी भाव, जब विभाव, अनुभाव और संचारी भाव का संयोग प्राप्त कर लेता है, तो रस रूप में उत्पन्न हो जाता है।
इस सिद्धांत के अनुसार, इन स्थायी भावनाओं में से किसी भी एक से कला के किसी भी अच्छे काम को आच्छादित होना चाहिए।
हालांकि रस की अवधारणा नृत्य, संगीत, रंगमंच, चित्रकला, मूर्तिकला और साहित्य सहित भारतीय कलाओं के कई रूपों के लिए मौलिक है, लेकिन एक विशेष रस की व्याख्या और कार्यान्वयन विभिन्न शैलियों और स्कूलों (Schools) के बीच भिन्न होता है।
भाव क्या है
इसी प्रकार से भरत ने भावों का विवरण भी दिया है। भाव वह भावना है जो आनंद या अनुभव पैदा करता है, जो अपने आप में एक इकाई है और वह आनंद या अनुभव रस है।
भाव तीन प्रकार के होते हैं,
- स्थायी भाव,
- संचारी भाव,
- और सात्विक भाव।
स्थायी भाव आठ प्रकार के होते हैं, जिनमें रति (प्रेम), खुशी, शोक (दुख), क्रोध, उत्साह, भय, जुगुप्सा (विमुखता), विस्मय शामिल हैं।
संचारी भाव 33 प्रकार के हैं, जिनमें निर्वैद (उदासी), ग्लानि (अवसाद), शंका (शक), असुया (ईर्ष्या), मद, शर्म, आलस्य, दैन्य (लाचारी), चिंता, मोह, स्मृति, साहस, गर्व आदि शामिल हैं। भाव की अभिव्यक्ति के साथ मंच पर बनाई गई कल्पना दर्शकों के मन में रस पैदा करती है और प्रदर्शन को पूरी तरह से सुखद बनाती है।
इस प्रकार यह लेखक, अभिनेता और दर्शकों द्वारा समान रूप से साझा किया गया एक अनुभव है। इसी प्रकार से सात्विक भाव भी आठ प्रकार के हैं, जिनमें स्तम्भ (निस्तब्ध), रोमांच, स्वरभेद (आवाज में विराम), विपथु (कम्पन), वैवर्ण्य (धुंधलापन), अश्रू और प्रलय आदि शामिल हैं।
रसों के बनने तक दर्शकों के मन में जो भावनाएँ बनी रहती हैं, उन्हें स्थायी भाव कहा जाता है। रस के निर्माण में योगदान देने वाली भावनाओं को संचारी-भाव के रूप में वर्गीकृत किया गया है और मानसिक सतह में भावना की तीव्रता के परिणामस्वरूप शारीरिक अनैच्छिक अभिव्यक्तियाँ, जो स्वयं प्रकट होती हैं 'सात्विक-भाव' कहलाते हैं।
इस प्रकार आप ने जाना कि भारतीय सौंदर्य शास्त्र की मूल बिंदु रस सिद्धांत से प्रभावित हैं और भाव अभिव्यक्ति के लिए या भाव संप्रेषण हेतु नाट्य शास्त्र में वर्णित भाव का पूर्णरुपेण स्पष्टीकरण भारतीय सौंदर्य की मूल चेतना है।
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