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College of Arts and Crafts Lucknow

कला एवं शिल्प महाविद्यालय, लखनऊ - सन 1854 

अंग्रेजी हुकूमत ने कला को बढ़ावा देने के लिए देश को पांच ज़ोन में बांट कर पांच शहरों चेन्नई,लाहौर(अब पाकिस्तान में),मुंबई, लखनऊ और कोलकाता में क्राफ्ट डिजाइन सेंटर स्थापित किये गए थे। 

    यह विद्यालय 1 नवंबर, 1892 को औद्योगिक डिजाइन स्कूल के रूप में स्थापित किया गया था। शुरू में विंगफील्ड मंज़िल में स्थित रही फिर  वह अमीनाबाद में और बाद में बांस मंडी में चली गई। सन् 1907 में एक औद्योगिक कॉन्फ्रेंस में प्रदेश में डिजाइन स्कूल की आवश्यकता पर विशेष रूप से विचार हुआ। 1909 में एक निर्माण का कार्य शुरू हुआ। फिर इस स्कूल का उद्घाटन 1911 में हुआ। नैथेलियन हर्ड प्रथम अंग्रेज प्राचार्य नियुक्त हुए । 1917 में इस स्कूल का नाम बदलकर राजकीय कला महाविद्यालय कर दिया गया।

    जिसमे से यह कॉलेज उत्तर भारतीय केंद्र के रूप मे शुरू हुआ। 60 के दशक में इसे आर्टस कॉलेज में तब्दील हुआ। वर्ष 1973 में यह आर्ट्स कॉलेज लखनऊ विश्वविद्यालय में विलय हुआ। आज यह इमारत 111 वर्ष पुरानी है। इतना बड़ा संकाय पूरे हिंदुस्तान में कहीं नहीं है। 

- कला महाविद्यालय में क्रमानुसार प्रधानाचार्य-
1.श्री नथेलियन हर्ड
2.श्री वसंत कुमार घोषाल
3.श्री असित कुमार हल्दर
4.श्री ललित मोहन सेन
5. श्री हरिहर लाल मेढ़
6. पद्मश्री सुधीर रंजन ख़ास्तगीर 
7. श्री हरिहर लाल मेढ़
8.श्री दिनकर कौशिक
9.श्री सुखवीर सिंह सिंघल
10. पद्मश्री रणवीर सिंह विष्ट
11. श्री योगेंद्र नाथ योगी
12.श्री बद्री नाथ आर्य
13.श्रीमती विमला विष्ट
14.श्री जय कृष्ण अग्रवाल
15.श्री भैरो नाथ शुक्ल
16.श्री राजीव नयन पांडेय
17.श्री धर्मेंद्र कुमार
18.श्री रतन कुमार
19.श्री संजीव किशोर गौतम
20. श्री रतन कुमार 
21. डॉ आलोक कुमार कुशवाहा (वर्तमान)

उत्तर प्रदेश भारत का एक बड़ा राज्य है। उत्तर प्रदेश में कला का विकास पुरातन रहा है।प्रागैतिहासिक काल में मिर्जापुर जैसे स्थानों की कला , शैल चित्र के रूप में हमारे सामने है। 
    उत्तर प्रदेश की कला में विकास का एक नया आयाम विकसित हुआ जिसे सबसे पहले शिल्प एवं कला महाविद्यालय का योगदान रहा। ऐतिहासिक दृष्टि से उत्तर प्रदेश में कलाओं का विकास दीर्घकालीन और प्राचीन रहा है।शैल चित्र, प्रस्तर मूर्तिया वैभवशाली विकास को चिन्हित करती है। टेराकोटा भी अहम भूमिका रखती है। समय समय पर कला विकसित होती रही ।जिसके लिए उत्तर प्रदेश तमाम महान कलाकारों का योगदान हम कभी नही भूल सकते। वीरेंद्र सेन , ललित मोहन सेन,हरिहर लाल मेढ़, बी एन जिज्जा , सुधीर रंजन खास्तगीर, इत्यादि कला के पारखी रहे। सभी चित्रकारों ने उत्तर प्रदेश में रहते हुए प्रदेश की सीमा लाँघ कर राष्ट्रिय एवं अंतर्राष्ट्रीय कला जगत में स्थान बनाया। आज के आधुनिक आयाम में लखनऊ कला महाविद्यालय की एक बड़ी भागीदारी रही है। 1911- 1915 नैथेलियन हर्ड,1925 से असित कुमार हल्दर की उपस्थिति एक मजबूत स्तम्भ की तरह थी। इनसे पहले 1918 में बंगाल लघु चित्र के प्रख्यात चित्रकार वीरेश्वर सिंह भी रहे।
 ललित मोहन सेन 10 वर्षो की सेवा में प्रदेश को नैसर्गिक सौंदर्य तथा रूपाकृति सजीव बोधगम्यता के लिए नए प्रयोग की दिशा में विस्तार दिया। ग्राफिक के तकनिकी रचना प्रक्रिया में बौद्धिक चिंतन का सूत्र भी दिया।हरिहर लाल मेढ़ प्राकृतिक सौंदर्य एवं छविचित्रो के लिए जाने गए।वही दून स्कूल से सुधीर रंजन खास्तगीर के आगमन से विद्यालय का स्वर्ण काल रहा। इस समय यह पूरे देश में अपना स्थान बना चुका था। कला का सुद्ध वातावरण बन चुका था।
    उत्तर प्रदेश के कला विकास में लखनऊ कला महाविद्यालय का प्रमुख योगदान रहा है । बहुत बाद में इसी क्रम में  काशी हिंदू विश्वविद्यालय , इलाहबाद विश्वविद्यालय, आगरा, कानपुर,अब शकुंतला विश्वविद्यालय में खुले कला विभाग भी अपना योगदान आज भी रहे है । तथा दो ललित कला अकादमियां भी है एक राज्य तथा एक क्षेत्रीय।

 उपलब्धि : 
कला एवं शिल्प महाविद्यालय, लखनऊ उत्तर प्रदेश के 5 कलाकार कला में अतुलनीय योगदान हेतु राष्ट्र के सर्वोच्च प्रतिष्ठित नागरिक सम्मान  पद्मश्री से सम्मानित प्रख्यात कलाकार जो अपनी सेवाएं और छात्र जीवन इस महाविद्यालय में बिताया और देश दुनियां में अपनी कला से इस महाविद्यालय का मान सम्मान बढ़ाया -
1. श्री सुधीर रंजन ख़ास्तगीर - 1957 पद्मश्री
2. सुकुमार बोस - 1970 पद्मश्री 
3. प्रो. रणवीर सिंह बिष्ट - 1991 पद्मश्री
4. श्री यशोधर मठपाल - 2006 पद्मश्री
5. श्री श्याम शर्मा - 2020 पद्मश्री ( अभी हालहि में वर्तमान में राष्ट्रीय ललित कला अकादमी में सर्वोच्च सम्मान से भी सम्मानित किया गया )

      वर्तमान में एक चुनौती है इसको लेकर। अब वर्तमान में कला महाविद्यालय के 21वें प्रधानाचार्य/संकायाध्यक्ष श्री आलोक कुशवाहा हैं। बातचीत के दौरान उन्होंने यह कहा है कि यह चुनौती है लेकिन मैं इस महाविद्यालय को आगे बढ़ाऊंगा। जैसे पहले था वैसे ही! और इस दिशा में कार्य भी कर रहे हैं। इन्ही के दिशा निर्देश में महाविद्यालय में कला के नई नई गतिविधियों को भी करने में अपने साथ छात्र और अध्यापकों को लेकर जुट गए हैं। यहाँ की कक्षाएं, पुस्तकालय महाविद्यालय में बने म्यूरल्स, कलाकृतियों को भी संवारने के कार्य किये जा रहे हैं। महाविद्यालय को उसके अपने स्वरूप में लाने के लिए भी प्रतिबद्द हैं। 

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साभार : श्री Bhupendra K. Asthana 
(कलाकार एवं कला समीक्षक, लखनऊ उत्तर प्रदेश)

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