Swami Vivekanand in Creative Textural Painting
By Dr Shashi Kant Nag
चित्रकार शशि कान्त नाग की कृति
One night, I got an opportunity to to join a Artist's Camp in end of December,2013 by the member of Anand-one Artist's Group of Varanasi and my friend Mr. Anil. In this Camp we have had to create painting based on the life of Eminent personality Swami Vivekanand. Many of artist came together and created lots of images regarding subject concern. For me it was a adventure towards maintain the style which I want to establish for a while. I start with drawing and slowly slowly some component added itself and transformed into floating forms. Really I did full of enjoy during creative process. I hope, all of you will enjoy this painting . send your valuable feed back. thanks
भारत में समकालीन कला का वर्तमान स्वरूप पुर्ववर्ती आधुनिक कला की समृद्धि से आवृत है। यद्यपि आधुनिक विकास की दिशा में हुये विभिन्न सामाजिक आंदोलनों के सापेक्ष कला-प्रवृत्तियों के परिवर्तित स्वरूप दृष्टव्य हैं तथापि प्रत्येक सामाजिक आंदोलनों के प्रवर्तकों के विचारों की समाजिक प्रतिष्ठा हेतु तथा वैचारिक अभिप्रेरक के रूप में भी कला निर्मित हुये।
हिन्दी साहित्य जगत मानता है कि भारत में आधुनिकता का प्रारम्भ तीन बार हुआ है। प्रथम, बुद्ध के आविर्भाव पर, द्वितीय कबीर, वेमना एवं अन्य सिद्ध साधुओं द्वारा तथा तीसरी बार औधोगिक क्रान्ति के पश्चात्। प्रथम दो बार की आधुनिकता भारत की पूर्णतः मौलिक अभिव्यक्ति थी और आधुनिक की पृष्ठभूमि में भी भारतीय वैदिक धर्म की असमानताएं एवं सामाजिक परिस्थितियां थी। तीसरी बार की आधुनिकता का उदय भारत में न होकर पश्चिमी देश युरोप व अमेरिका में हुआ और इसके मूल में किसी विशेष देश की केवल धार्मिक, राजनैतिक एवं सामाजिक परिस्थितियां उत्तरदायाी नहीं थी, अपितु सामूहिक रूप से कई देशों की परिस्थितियां सहायक थी। यथा- फ्रांस की राज्य क्रान्ति, रूस की लाल क्रान्ति तथा द्वितीय विश्वयुद्ध की भयावह त्राषदी। युरोप से भारत में आधुनिकता लाने का श्रेय राजा राममोहन राय, स्वामी विवेकानन्द, महात्मा गाँधी, भीमराव अम्बेदकर तथा महर्षि अरविंदो आदि को जाता है। इस आयातित आधुनिकता का स्वरूप यहाँ युरोपीय न होकर भारतीय है जिसे भारतीयों ने आत्मसात किया और इसके मूल में राष्ट्र-चेतना के साथ सामाजिक कुरीतियों के प्रति आधुनिक विमर्श शामिल था।1
साहित्यकार श्रवण कुमार ने उल्लेख किया है कि उन्नीसवीं सदी की आधुनिकता में हिन्दू धर्म अब वह नहीं है जो मनु स्मृति में है या जो कंबन, कबीर अथवा तुलसी के समय में था अथवा जो विद्यापति की रचनाओं में मिलता है। उसका शाश्वत, चिर नवीन और जागृत रूप अब वह है जिसका आख्यान रामकृष्ण परमहँस, स्वामी विवेकानन्द, श्री अरविन्दो, महात्मा गाँधी और स्वामी दयानन्द ने किया।2
दृश्यकला के अन्तर्गत आधुनिक कला के विषय संदर्भ भी क्रमशः इन वैचारिक परिवर्तनों की परिणति रही है और विभिन्न कालखण्ड मे उत्पन्न सामाजिक विचारों के सापेक्ष कृतियों का निर्माण हुआ। चाहे वह बंगाल से उत्पन्न पुनरूत्थानकालीन कला हो अथवा बंगाल के दुर्भिक्ष या देश विभाजन त्राषदी या इससे पुर्व राजा रवि वर्मा की कलाधारा या जॉन ग्रिफिथ्स और ग्लैडस्टोन सोलोमन की भारतीय कला दर्शन। इस वैचारिक यात्रा में यदा कदा भारतीय चित्रकारों एवं मूर्तिकारों ने सामाजिक महानायकों के जीवन वृत एवं कृतित्व पर आधारित कृति निर्माण कर कला और समाज के पारस्परिक सम्बन्ध को प्रागढ़ किया और बेहतर समाज के निर्माण में अपना योगदान किया है। प्रस्तुत शोध-पत्र के द्वारा वाराणसी के समकालीन चित्रकारों के कृतित्व विषय में स्वामी विवेकानन्द के विचार एवं जीवन दृश्यों को प्रस्तुत किया गया है।
वाराणसी के कलाकार-जगत में जनता से जुड़ कर या जनप्रेरणा के निमित कला रचना के उद्देश्य से आनंद-वन कलाकार समूह का गठन हुआ और देखते देखते इस कलाकार समूह की गतिविधियों के पांच वर्ष हो गए।3 प्रत्येक महीने के एक रविवार को विभिन्न स्थानो में एकत्रित होकर इस समूह के तत्वाधान में कलाशिविर आयोजित होना एक प्रमुख गतिविधि के रूप में रेखांकित होने लगा और धीरे धीरे इस समूह के माध्यम से स्थानीय कलाकारों ने अन्य संस्थाओं यथा रामकृष्ण मिशन आश्रम, सुबहे बनारस, जयशंकर प्रसाद न्यास आदि के सहयोग के लिए तथा देश की जनता के लिए विभिन्न विषयों पर आधारित चित्र बनाये। ज्ञात हो कि नेपाल की भूकंप त्राषदी के पीड़ितों के सहयोग के लिए भी इन कलाकारों ने अपनी कृतियों को समर्पित किया जिसका सीधा लाभ पीड़ितो को प्राप्त हुआ।4 अभी तत्काल में ३२ वें कलाशिविर में आनंद-वन कलाकारों का जत्था दिनांक २८ फ़रवरी २०१६ को वाराणसी की उत्तरी सीमावर्ती गाँव सरायमुहाना पहुंचा। उपस्थित जनसमुदाय की आँखों में कौतुहल थी और जैसे जैसे कलाकारों ने गाँव के घरों की भित्तियों पर चित्रण प्रारंभ किया, गाँव वालों का प्यार अतिरेक से इन कलाकारों के लिए उमड़ने लगा। और देखते देखते मतस्यावतार, मछलियों की दुनिया, मनुष्य और मछलियाँ, श्रीगणेश आदि अनेक सुन्दर ग्राफित्ती चित्र बन गए।5
वर्ष 2015 में वाराणसी के लक्सा मुहल्ला में स्थित रामकृष्ण मिशन आश्रम में आनंदवन कलाकार समूह के तत्वाधान में लगभग 40 स्थानीय चित्रकारों का एकदिवसीय शिविर का आयोजन हुआ। इस शिविर में शामिल चित्रकारों में वरिष्ठ चित्रकार एवं काशी हिन्दू विश्वविद्यालय के एसोसियेट प्रोफेसर एस0 प्रणाम सिंह, वसन्त कॉलेज फॉर वुमैन, राजघाट के एसोसियेट प्रोफेसर सत्येन्द्र बाउनी, वेद प्रकाश मिश्र, डॉ0 सूनील कुमार विश्वकर्मा एवं डॉ0 शशि कान्त नाग (स0 प्राध्यापक, म0गाँ0 काशी विद्यापीठ), आशा प्रकाश, गरिमा रानी, अजय उपासनी, अनिल कुमार, पंकज शर्मा, पूनम राय, निहारिका सिंह तथा छायाकार विनय रावल, राजकुमार सहित कई नवांकुर प्रतिभायें थी जिन्होंने अपनी कलात्मक दृष्टि से स्वामी विवेकानन्द के जीवन दृश्यों और विचारों को अपनी चित्र रचना में अंतर्गम्फित किया। वर्ष 2013 के दिसम्बर महीने में भी इन रचनात्मक चित्रकारों ने स्वामी विवेकानन्द को केन्द्रित कर कला-शिविर का आयोजन किया था। इन चित्रों में व्याप्त कला भाषा रचनाकारों के निजि शैली के अनुरूप हो सकती है किन्तु निर्दिष्ट विचारों के अन्तर्गुम्फन में सार्वभौमिकता की खुश्बू है जिसे आसानी से महसूस किया जा सकता है।
वरिष्ठ चित्रकार एस प्रणाम सिंह की कृति ‘फील एण्ड शी’
जैसा कि स्वामी जी के उद्बोधन में- ‘‘किसी भी जाति के, कुल के हों, हीन हों, समर्थ हों, सभी मनुष्य, नर-नारी और शिशु आज सुनें और समझें कि क्षुद्र में, श्रेष्ठ में, धनी में, निर्धन में, सभी के अन्तर्तम में उसी एक परब्रह्म का निवास है। अतः निर्धनों और असहायों की सेवा ही ईश्वर सेवा हैं।’’ चित्रकार एस0 प्रणाम0 सिंह का दृष्टिकोण उनके चित्र ‘फील एण्ड शी’ में इस विचार बिन्दु को गहरायी से अभिव्यक्त करता है। उनके चित्र में केन्द्रित विम्ब में कृषकाय निर्धनता और असहाय एवं भयमिश्रीत उत्सुकता भरे नेत्र वाली तरूण मानवीय काया प्रतिकात्मक दैविय रूप में अंकित है जिसके पीछे के दिव्य आभा-मण्डल उन विचारों को सूचक हैं जो स्वामी जी ने इंगीत किया है। इस आभामण्डल के उपरी हिस्से में स्वामी जी की उदार छवि एक सामान्य मनुष्य के रूप में अंकित होने से इस बात को और बल प्राप्त होता है कि विचारोनुरूप हमारे कर्तव्य महत्वपूर्ण हैं न कि व्यक्ति। साथ ही गहरे नीले रंगो की अवकाश-योजना से स्वामी जी का व्यक्तित्व नीले आकाश में चमकते हुए तारे के सदृश बन पड़ा है। एस॰ प्रणाम सिंह के द्वारा स्वामी जी को केन्द्रित एक अन्य कृति में स्वामी विवेकानन्द की तपष्या, योग और शरीर के सात कुण्डलीनी चक्रों के द्वार उन्मीलन को दर्शाया गया है। यह चित्र स्वामी जी के जयन्ती समारोह में काशी हिन्दू विश्वविद्यालय में भी प्रदर्शित हुयी थी।
चित्रकार अजय उपासनी की कृति स्वामी जी के पदचिन्ह
चित्रकार अजय उपासनी ने अपनी कृति में स्वामी जी के पद-चिन्हों को स्मृत किया तथा उनके अनुसरणीय स्वरूप को उजागर किया है। चित्र के अग्रभूमि में जहां स्वामी जी की नेतृत्वकारी छवि को स्थान दिया गया वहीं पाशर््व में शिकांगो के धर्मसंघ भवन को स्थान दिया है। यह चित्र कई संकेतों को इंगीत करता है। इसमें एक तरफ स्वामी जी की कन्याकुमारी यात्रा के विम्ब हैं तो दूसरी तरफ विदेश में क्रान्तिकारी दार्शनिक विचारों की प्रसार यात्रा के संकेत समाहित हैं जिसमें पद-चिन्ह प्रतीक स्वरूप अंकित किया गया है।
सुनील कुमार विश्वकर्मा ने हमेशा अपने चित्रों में जीवंत घटनाओं को प्राथमिकता दी है। इनके चित्रों में रहस्यवादिता का स्थान नगण्य होता है। अपनी तीक्ष्ण व अन्वेशी रचनात्मक दृष्टि से ये अमूर्त रहस्यों को भी उद्घाटित कर मानवीय रूपाकारों के साथ चित्रण करते हैं। स्वामी विवेकानन्द के जीवनवृत की एक सत्य घटना वाराणसी के सुप्रसिद्व संकटमोचन मन्दिर की है जहां स्वामी जी को यह ज्ञान हुआ कि विपत्ति या मुसीबत से आप जितना भागोगे उतना ही वह आप पर हावि होगी। अतः रूक कर उसका समाधान करना चाहिये। घटना वृतांत संक्षेप में यह है कि संकटमोचन मन्दिर के प्रांगण में वानरों ने इनके थैले में खाने योग्य सामाग्री जानकर स्वामी जी का पीछा करने लगे। स्वामी जी ने जब महसूस किया कि बन्दर उनके पीछे लगे हैं तो वे दौड़ कर भागने लगे। इससे बन्दरों का समूह और लालायीत होकर तेजी से भागने लगे। तब वहां उपस्थित किसी सज्जन ने स्वामी जी को तेज आवाज से रूकने के लिये कहा। फिर उस सज्जन ने उन्हें बन्दरों से पीछा छुड़ाने के उपाय बताते हुए धीरे धीरे आगे बढ़ने का निर्देश दिया। इस प्रकार स्वामी जी बन्दरों से भयमुक्त हुये। इस घटना को अत्यंत भावपूर्ण व सादृश्यपूर्ण चित्रात्मक अभिव्यक्ति से सूनील कुमार विश्वकर्मा ने जीवंत किया है।
चित्रकार शशि कान्त नाग की कलाभाषा शैलीगत है और निजी है। स्वामी जी की छवि के निर्माण में इन्होंने जलीय रूपों यथा जल में तंरग युक्त लयातमक रूपाकारों का संदर्भ लिया है। यह स्वामी जी की विराट छवि की वैभवशाली चित्रात्मक प्रस्तुति है जो इस प्रकार के नीले रंगत युक्त विशाल सागर सदृश निरूपन व अन्तर्गुम्फन से स्पष्ट होती है। यह व्यक्ति के सूक्ष्म से विस्तार एवं विस्तार से सूक्ष्म की ओर अंतर्यात्रा की सूचक है तथा चित्र में दृष्टिगत तुलिकाघातों की जटील संरचना रचना प्रक्रिया को दर्शाती है। शैलीगत अवधारणा के अनुरूप निर्मित इस प्रकार के शबीह चित्र सरलता से बोधगम्य है और उत्कृष्ट कौशल एवं साहस की मांग करता है।
नवोदित चित्रकर्त्री सुश्री शिखा पटेल ने स्वामी जी के चरित्र के आदर्शमयी स्वरूप को रेखांकित किया है। ‘‘आपके विचार ही आपके व्यक्तित्व का निर्माण करते है’’- इस शीर्षक से निर्मित चित्र में इन्होंने नरेन्द्रनाथ से स्वामी विवेकानन्द के स्वरूप के प्राकट्य रहस्य को उद्घाटित किया है। एक चित्रकार के रूप में इनकी वैचारिक ओजस्विता तकनीकि कौशल के साथ झलकती है। चित्र में निर्मित वस्त्र विन्यास से विन्यस्त स्वामी जी की
शिखा पटेल की कृति
अन्तर्जालीय संरचना के निर्माण में शिखा के दृश्यानुभव कहीं ना कहीें डिजीटल माध्यमों के द्वारा प्रस्तुत फैंटेसी-युक्त चलचित्रीय विम्ब से जूड़ते हैं। यह नवीन आग्रह परम्परावादी नहीं है किन्तु नव छात्रों के अद्यनुतन प्रवृत्तियों की द्योतक अवश्य है। यह प्रवृत्ति कालजनित और स्वभाविक है जो एक नव रचनाकार के नवीन माध्यमों के उपयोग के प्रति लालसा और प्रयोगात्मक वृत्ति को दर्शाती है।
चित्रकार अनिल कुमार की कृति स्वामी विवेकानंद की कर्तव्य दृष्टि
कुमार संजय की कृति स्वामी जी के ध्यानस्थ मुद्रा
कुमार संजय ने स्वामी जी के ध्यानस्थ मुद्रा को अपने चित्र में दिखाया है। भौतिकता से अध्यात्म की यात्रा को विम्बित करते हुए इस चित्र का अन्तराल विभाजन सम्मात्रिक है जिसमें पाषाण सदृश संरचना भौतिक आवरण के टूटने का और बुलबुले जैसी रचना अध्यात्मिक भावोपलब्धि की सूचक है। इसी प्रकार चित्रकर्त्री आशा प्रकाश ने अपनी स्व की अध्यात्मिक भाव को चित्राभिव्यंजना में महत्वपूर्ण स्थान दिया है। आज के व्यापारिक प्रतिस्पर्धा से भरे सामाजिक माहौल में स्वामी जी के कृतित्व व व्यक्तित्व को केन्द्रित कर चित्र रचना कर निःसन्देह इन कलाकारों ने सामाजिक दायित्व का निर्वहन किया है और साहस का परिचय दिया है। इनका यह कदम नई पीढ़ी के प्रतिभाओं के लिए विशेष प्रेरक है ताकि स्वामी जी के विचारों एवं व्यक्तित्व के आदर्शमयी स्वरूप को ये आत्मसात कर सकें क्योंकि सर्वविदित है कि डिजीटल युग की नयी पीढ़ी के आदर्श बदल चुके हैं।
संदर्भः-
1 ़ श्रवण कुमार, आधुनिकता और हिन्दी साहित्य, पृ0 9
2 वही
3 एस0 प्रणाम सिंह, (वरिष्ठ चित्रकार एवं संस्थापक सचिव, आनन्द वन कलाकार समूह)
4 नेपाल त्रासदी से पीड़ितों के सहयोग के लिए आयोजित इस कार्यक्रम में कलाकारों ने तन मन और धन से सहयोग किया था। शामिल चित्रकारों ने स्वयं भी एक दूसरे का चित्र क्रय किया और राशी एकत्र किया था। इस राशी का वितरण नेपाल के चित्रकार ‘जीवन सूवाल’ के द्वारा उपलब्ध कराये गए त्रासदी प्रभावित कलाकारों की सूची के आधार पर किया गया।
5 इस कार्यक्रम में स्वयं लेखक ने अग्रणी भूमिका निभायी थी।
6 वर्तमान में इनमें से अधिकांश चित्र स्थानीय रामकृष्ण मिशन आश्रम में संग्रहित हैं।
प्रस्तुतकर्ता : डॉ शशि कान्त नाग, असिस्टेंट प्रो ललित कला, डॉ विभूति नारायण सिंह परिसर, गंगापुर, महात्मा गाँधी काशी विद्यापीठ, वाराणसी यह प्रकाशित आलेख है जिसका विवरण अधोलिखित है.-
डॉ शशि कान्त नाग, "वाराणसी के चित्रकारों कि रचनात्मक दृष्टि में स्वामी विवेकानन्द", Interdisciplinary Journal of Contemporary Research, Vol. 3, No. 5, 2016, pp. 33-36. (ISSN 2393-8358)
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