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Abstract Beauty: Paintings by S. K. Nag in Oil and Acrylic

Three beautiful Paintings by S. K. Nag | Abstract Acrylic Painting on Canvas  | Home Decor Painting   Content: Dive into the mesmerizing world of abstract art with three stunning paintings by the renowned artist S. K. Nag . These works, created in oil and acrylic on canvas, showcase the artist's ability to blend emotion, color, and form into visually arresting masterpieces. 1. "Whirlscape,  Medium: Oil on Canvas,  Size: 38 cm x 48 cm, 2011 Description: "Whirlscape" captures the chaotic beauty of nature through swirling brushstrokes and an interplay of vibrant hues. The painting evokes a sense of motion, inviting viewers to immerse themselves in its dynamic energy. Shades of blue and green dominate the canvas, symbolizing harmony and transformation, while the burst of pink adds a touch of vibrancy, suggesting hope amidst chaos. Search Description: "Experience the dynamic beauty of 'Whirlscape,' an abstract oil painting by S. K. Nag. Explore thi...

Parde ke Pichhe Ka Prashna (An article on Indian Contemporary Social Subject)

पर्दे के पीछे का प्रश्न

( समसामयिक आलेख )

‘‘पार्क में पेड़ की छांव में बैठे दो नवयुवक कला-विषयक प्रश्नों पर चर्चा कर रहे थे। एक ने प्रश्न पुछा- ‘लियोनार्दो द विंचि की प्रमुख पेंटिंग कौन.....’ बीच में ही दूसरे युवक ने कहा- मोनालिसा। अमुक युवक ने प्रसन्नता से कहा- अरे वाह! तुम्हे तो पता है। परन्तु दूसरा युवक बोला- अरेऽऽ, मै इस मोनालिसा की बात नही कर रहा; वहां देखो, ‘‘वो हरे कुर्ते वाली...., दिखायी दी तुम्हे? इशारा करते हुए उसने पुनः बोला- वो जा रही है... अपने चेहरे को दुपट्टे से ढंक कर। मैने तो उसके हाव-भाव से पहचाना।’’ उपरोक्त कथानक जैसी घटनायें अक्सर हमारा ध्यान खींचती है और बदलते समाज की एक नयी तस्वीर बयां करती है।
देश के अधिकांश महानगरों/नगरों में पर्दा प्रथा से दूर होती नयी पीढ़ी की नवयुवतियाँ पुनः अपने चेहरे को ढंक कर चहलकदमी करते हमें अक्सर दिख जाती हैं। सम्भवतः इसके कुछेक कारण हो सकते हैं यथा- तेज धूप एवं धूल से बचाव आदि। किन्तु, अक्सर जब ये आधुनिक नवयुवतियाँ अपने पुरूष मित्रों के साथ होती हैं या नवयुवक मित्र के साथ बाईक पर सवार हो उसके कन्धे पर सिर टिकाये जा रही होती हैं तब ये पर्दा किसलिए होता है? वस्तुतः यह एक उत्श्रृंखल वृति की द्योतक है क्योंकि इस प्रकार अपने चेहरे को ढंक कर वह नवयुवती अपने परिचितों व सम्बंधियों की दृष्टि से बचना चाहती हैं। यहाँ अधिकांश नवयुवक और नवयुवतियाँ ऐसे भी मिलते हैं जो बिना विवाह किये ही साथ रहते हैं...... मिलने पर एक दूसरे को अपने ब्वाय-फ्रैंड या गर्ल-फ्रैंड के रूप में परिचय कराते हैं।
सम्बंधों को स्वतंत्रता से जीने और स्वीकारने का अधिकार स्त्री और पुरूष दोनों को है पर इसप्रकार की उत्श्रृंखल वृति से ग्रस्त युवतियाँ भी कहीं ना कहीं ‘ऑनर किलिंग’ जैसी घटनाओं की जिम्मेदार होती हैं। यदि ये युवतियाँ पुरूषों से स्वस्थ मित्रता रखती हैं या रखना चाहती हैं तो इन्हें एैसे मित्रों का परिचय अपने घर परिवार के सदस्यों से अवश्य कराना चाहिये। साथ ही, इन्हें चाहिये कि मित्रता के बढ़ते भावनात्मक दायरे को भी अपने परिवार के साथ पारदर्शिता में रखें ताकि इन संबंधों की आड़ में कुछ अनुचित न हो। यह आज के दौर में विशेष प्रासंगिक है जब हम सेक्स-शिक्षा और परिपक्व समझदारी की बात करते हुये स्त्री-पुरूष के प्रति लैंगिक समानता की दृष्टि रखते हैं और मानव जीवन रूपी रथ के दो पहियों के रूप में इन्हें स्थान देते हैं। यही मानवीय सम्बंध पारलौकिक अनुभवों से युक्त गतिमय जीवन के सृजन-सूत्र हैं एवं यही हमें लौकिक बनाता है। 

एक तरफ जहां पूरे देश में स्त्री-शक्ति के जागृति की चर्चा हो रही है जिसकी जरूरत वर्तमान समय की मांग भी है। हमारे राष्ट्र के कानून में भी इस संदर्भ में संशोघन हुये हैं तथा कठोरता का समावेश किया गया ताकि समाज में स्त्रियों के प्रति उत्श्रृंखल पुरूषों के शोषणात्मक रवैये पर लगाम लग सके। पिछले दिनों मीडिया के द्वारा इन दुर्घटनाओं को प्रमुखता से उजागर किया गया जो इनकी सकारात्मक भूमिका रही। भारतीय कानून में ऐसी कई धारायें हैं जिसके तहत् स्त्रियों की एक शिकायत पर किसी भी पुरूष (चाहे वह व्यक्ति कितना भी स्वस्थ मानसिकता का हो या चरित्रवान हो) को तुरंत हथकड़ी लग सकती है। स्त्रियों के हित में निःसन्देह यह एक उचित कदम है पर; इसी समाज का एक कड़वा सच यह भी है कि कई नवयुवतियाँ स्वार्थपूर्ति हेतु नवयुवकों की विभिन्न योग्यताओं से प्रभावित होकर, पहले उनके साथ दोस्ती करती हैं और फिर इस दोस्ती के दायरे को लांघने में भी इनको हिचक नहीं होती। इस दौरान लड़की अपने मित्र के साथ पति के तरह व्यवहार करती है साथ ही, इसका भी चालाकी से ख्याल रखती है कि स्वयं के नजदीकी परिवार से लड़के या पुरूष मित्र का मेंलजोल न हो पाये। कालान्तर में, धीरे-धीरे नवयुवक को भावनात्मक रूप से जोड़ कर वह कई सपने बनाती है और अचानक नये विकल्प (दूसरा नवयुवक) को देखकर पिछले मित्र को गहरे भावनात्मक अंधकार में छोड़ जाती है। इन घटनाओं के मद्देनजर ऐसे कई केस रोजमर्रा के जीवन में दिखायी देती हैं या खबर मिलती है कि फलां नवयुवक ने आत्महत्या कर ली।
इसप्रकार के मानसिक अवसाद की व्याख्या संवेदनात्मक जुड़ाव के कारण वह नवयुवक नहीं कर पाता; कारण कि उसके पास किसी प्रकार का ठोस कानूनी दस्तावेज नही होता। ऐसे ही एक भावनात्मक अत्याचार से त्रस्त और मानसिक अवसाद से ग्रस्त एक युवक (जो लगातार चार महीने से चिकित्सीय सलाह और दवायें ले रहा था) ने इस संदर्भ में अपने एक वकील मित्र से सलाह लिया तो संक्षेप में ज्ञात हुआ कि भारतीय न्याय प्रक्रिया में इस प्रकार के केस में दस्तावेजी आधार नहीं होने से न्याय नहीं हो पाता बल्कि ऐसी स्थिति में लड़की या युवती झूठ का पुलिन्दा बांध कर उस नवयुवक को और अधिक घोर संकट में डाल सकती है और उसे तुरंत जेल हो सकती है। हमारी न्याय प्रक्रिया इस प्रकार के केस में प्रायः महिला-पक्ष के प्रति संवेदना के साथ खड़ी रहती है और हमारा समाज भी नैतिकता की आड़ में एकबारगी पुरूष को ही दोषी मानता है। इस स्थिति में पुरूषों या नवयुवकों के साथ भावनात्मक अत्याचार करने वाली इन उत्श्रृंखल महिलाओं से कैसे निपटा जाना चाहिये; यह प्रश्न विचारणीय है। उपभोक्तावादी संस्कृति के इस घिनौने दौर में वरिष्ठ कवि ‘धुमिल’ की ये पंक्तियाँ किस संदर्भ में देखी जायेंगी-
स्त्री/अंधेरे में देह की अराजकता है/
स्त्री/पुंजी है/ बीड़ी से लेकर बिस्तर तक/
विज्ञापन में फैली हुयी।

लेखक-डॉ  शशि कान्त नाग 
कला समीक्षक एवं संस्कृतिकर्मी

११ फरवरी २०१३, 




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