Art of K S Kulkarni with religious influences
भारत की आधुनिक कला शैली और धर्मं : के एस कुलकर्णी के चित्रों के सन्दर्भ में
कला और धर्म की प्रकृति भारत के संदर्भ में अन्योन्याश्रित रही है।
धार्मिक हितों की पूर्ति के निहितार्थ में कला का उपयोग किये जाने या कलाकृति निर्मित करने के विवरण हमें अनेक प्राचीन ग्रन्थों और कला इतिहास की विभिन्न पुस्तकों में प्राप्त होते हैं। मानव इतिहास के विभिन्न कालावधि में विभिन्न देशों में प्रचलित व प्राप्त कला के रूपों से वहां कें धार्मिक एवं सांस्कृतिक परिवर्तनों को पहचाना जा सकता है।
जैन कला, बौद्ध कला, हिन्दू कला इत्यादि नाम विभिन्न कलामर्मज्ञों नें इन्हीं परिवर्तनों के आधार पर इन कलारूपों को दिया है जिससे उस काल विशेष की संस्कृति, समाज इत्यादि का समग्र ऐतिहासिक परिप्रेक्ष्य में अध्ययन किया जा सके। इन नामकरणों के संदर्भ सीधे तौर पर कलारूपों में व्याप्त विम्बों, आकृतियों व प्रतीकों के द्वारा कालविशेष में प्रचलित धर्म व मानव सभ्यता के विभिन्न सांस्कृतिक गतिविधियों व धार्मिक निर्देशें को दर्शाते हैं। ऐसे में इन कलारूपों के निर्माण शैली में परिवर्तन स्वभाविक है।
इस प्रकार कला की विभिन्न शैलियों का अध्ययन भी संभव हो सका। वस्तुतः कला का अंतर्निहित धर्म होता है- समकालीन उंचाई को प्राप्त करना। इस शोध - पत्र का प्रसंग एक शैली विशेष में निर्मित मध्य काल के महत्वपूर्ण कवि जयदेव रचित काव्याभिव्यक्ति गीत गोविंद है जिसकी कलाभिव्यक्ति बसोहली और कांगड़ा शैली के अंर्तगत हमें प्राप्त होते हैं।1
20वीं सदी के मध्य में भारतीय आधुनिक कला की विकास-धारा को अपनी ऊर्जा से प्रगति प्रदान करने वाले महानायक कृष्णजी शामराव कुलकर्णी का व्यक्तित्व उस काल की एक नेतृत्वकारी शक्ति के रूप में उभरता है, जिसमें वे चित्रकार, मूर्तिकार, कला-समीक्षक, शिक्षाविद् और कई संस्थानों के जनक के रूप में पहचाने जाते हैं। भारतीय आधुनिक कला की रचनात्मक ऊर्जा और विधा विश्ोष के लोगों को प्रोत्साहन या संरक्षण का कार्य जिन ऊँचाइयों के साथ प्रो0 के0एस0 कुलकर्णी ने किया, वह परिवर्तनकालीन भारत में बहुत कम कलाकारों में दिखता है।
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Profile Photo K S Kulkarni |
स्वभाव से मितभाषी, संजीदा, मननशील और आडम्बरहीन इस महानायक का जन्म 7 अप्रैल, 1918 को कर्नाटक के बेलगाँव जिल्ो में हुआ था।2 13 वर्ष की आयु में माता-पिता दोनों का देहान्त हो जाने के बाद संघर्षों भरी दिनचर्या के साथ इन्होंने अपनी कला यात्रा जारी रखी। 16 वर्ष की आयु में सायंकालीन कला स्कूल में अध्ययन करते हुए इन्होंने 1935-42 तक जे0जे0 स्कूल ऑफ आर्ट, बम्बई से कला-शिक्षा प्राप्त की।3 तदोपरान्त 1943 में इनका आगमन एक टेक्सटाइल डिजायनर के रूप में दिल्ली क्लाथ मिल, नई दिल्ली में हुआ।
18 महीने कार्य करने के उपरान्त में स्वतन्त्र कलाकार के रूप में दिल्ली से अपनी यात्रा शुरू की।4 जुलाई 1945 से वे दिल्ली पालिटेक्निक कला विभाग में अध्यापन कार्य के लिए वहाँ स्टाफ मेम्बर के रूप में शामिल हुए।5 सन् 1946 में आपने मेरठ कांग्रेस अधिवेशन में सज्जा कार्य किया जहाँ इनकी मुलाकात शंखो चौधरी, प्रभास सेन इत्यादि कलाकारों से हुई।6 प्रारंभ के दिनों में दिल्ली पॉलटेक्निक एवं त्रिवेणी स्टूडियो में आपने कला-शिक्षण के क्षेत्र में अपनी अमूल्य सेवा देकर कई नामचीन कलाकारों यथा महेन्द्र पूरी, पिम्मी खन्ना, रामेश्वर ब्रूटा इत्यादि के विकास का मार्ग प्रशस्त किया।
बनारस के दृश्य कला संकाय से सेवानिवृत होने के पश्चात् पुनः दिल्ली लौटने के उपरांत ललित कला अकादमी की गढ़ी कार्यशाला में आप निरंतर सृजन करते रहे तथा दिल्ली कॉलेज ऑफ आर्ट में स्नातकोत्तर के छात्रों को पढ़ाया। विदेश यात्रा एवं स्कीडमोर कॉलेज, न्युयार्क में प्रवास के दौरान भी आपने भारतीय आधुनिक कला के विकासशील चरित्र तथा प्रयोगधर्मी प्रवृतियों को अपने शैक्षणिक कार्यक्रमों के द्वारा प्रसारित किया। इस प्रकार जीवन पर्यन्त, कला साधना करते हुए 17 अक्टूबर 1994 को आपने परमसत्ता से साक्षात्कार किया।
यद्यपि यह धर्म विश्ेष की कथा की काव्यात्मक व्याख्या है पर भारतीय आधुनिक चित्रकार कृष्णजी कुलकर्णी (1918-1994) द्वारा 1980 के दशक में निमि्र्ात गीत-गोविंद श्रृंखला चित्रों का उद्देश्य धर्म प्रसार नहीं अपितु नवीन कलाभाषा विकसीत करना था । कलाभिव्यक्ति के शैलीगत परिवर्तनों के बावजूद जयदेव रचित यह कथा के अंतर्निहित धार्मिक प्रसंगों को हमेंशा प्रकट करता है और साथ में रसास्वादन के नये आयाम भी प्रदान करता है।
कांच पटल और कैनवस पर निर्मित उनकी चित्र श्रृंखला ‘गीत-गोविंद’ कुछ ऐसा ही लालित्य प्रकट करती है। इस श्रृंखला का प्रमूख चित्र ‘‘गोपियों के साथ श्रीकृष्ण’’ 1986 (चित्र सं॰ 1) में पौराणिक विषय महाभारत के नायक श्रीकृष्ण और उसके विशेष प्रेम को सपाट रंगो के आच्छादन और घनवादी दृष्टियुक्त ज्यामिति के साथ जोड़कर जीवंत रूपों के उत्साह को दर्शाया गया है।7
कुलकर्णी के द्वारा बनाये गए इस चित्र में इजीप्ट के आदिवासी मुखौटो के सदृश चेहरों को समतल धब्बे से युक्त रंग योजना से सूझाये गये हैं जिसके साथ उपर की ओर पक्षियों की आकृतियाँ दिखती है। इसमें हाव-भाव की लयात्मकता का अंकन एक खास तकनीकि युक्ति से सम्भव है जो कलाकार के संगीत व नृत्य के प्रति अनुराग की ओर इशारा करते हैं।8
कृष्ण चैतन्य ने बसोहली शैली में निर्मित गीत-गाविंद चित्रों से इसकी तुलना करते हुये उल्लेख किया हैः "K.S. Kulkarni's paintings on
Gita Govinda with the freshness and strength of their pictorial statement,
bring a vigor which that poem lacks with its hot-house, over-sensous eroticism.
Basohili, with the stark vigor of its pictorialism, was able to expel this
enervating mood. Kulkarni's achievement is similar, but his pictorialism is
wholly different, Modern,"9
ये सब कृतियों कुलकर्णी को मानवीय जीवन व गतिविधियों से गहरे स्तर पर जोड़ती है। यह जीवन के प्रति उनके प्रेम को दर्शाता है। मानवीय गतिविधियों से जुड़े चित्रों का संरचनात्मक परिवेश, घटना या स्थिति या कोई भी भाव-भंगिमा को समग्रता में अभिव्यक्त करने में सक्षम है। स्वयं कृष्णजी कुलकर्णी के शब्दों से भी इसका बोध होता है, जैसे - “A style standardised and the expression of the age conditioned by the
march of human are two different things. Techniques and mediums out – wardly is
not really a matter of concern."10
कृष्णजी कुलकर्णी ने अपनी कलाभाषा मे भौतिक और पराभौतिक तत्वों के समायोजन से उल्लेखनीय परिणाम प्राप्त किया।11 जगदीश स्वामीनाथन के अनुसार ‘‘वे यथार्थ की वस्तुपरक दुनिया व औपचारिकता से परे ले जाने के लिए विशिष्ट है।’’12 उनके चित्र व कृतियाँ कार्यालय या ड्राइंगरूम की सज्जा से इतर कहीं ज्यादा महत्वपूर्ण हैं।13 जया अप्पासामी ने उद्धृत किया है - ‘‘कैनवास उनके लिए ऐसा खुला मैदान होता था जहाँ वे अपने विचारों को वास्तविक रूपाकार देते थे। उनके अनेको काम प्यार की भाषा प्रस्तुत करते हैं तथा दिशा, समय, संगीतमयता इत्यादि उनके कार्यो की प्रमुख विशेषता है।
कृष्णजी कुलकर्णी के रंगो का मिश्रण विचित्र, असाधारण, मार्मिक है यद्यपि वे काले रंग का इस्तेमाल सूक्ष्मता से करते थे। कुलकर्णी साहब ऐसे कलाकार थे जिन्होंने निश्चित कार्य को भी अपने रंगो के द्वारा इतना परिवर्तित कर दिया कि ये कार्य वर्तमान से लेकर भविष्य तक चेतना के रूप में महसूस किया जाता रहा है।’’14 वाशिंगटन डेली न्यूज ने कुलकर्णी के कार्यो का विश्लेषण उपरोक्त विद्वानों की भांति ही किया- “The
shapes are pleasingly irregular, the style is vigorous, the tone is at once
exotic and homely. The colour runs up the keyboard in an overall harmony of
sharp and flats. It is a synthesis of traditional value of Indian paintings
plus western trends."15
कृष्णजी कुलकर्णी ने स्त्री और पुरूष के विभिन्न भावों को बहुसंख्या में चित्रित किया। उनके रेखाचित्रों व रंगो का मिश्रण केवल कैनवस और कागज पर ही नहीं बल्कि धातु और कांच पर भी अपनी अनुपम छटा बिखेरती थी। इनके चित्रों में ना कोई कुंठित भाव होता था और ना ही कोई शोषणात्मक आकृति।16 बस अनुभव का ही सामंजस्य रहस्यात्मक दृष्टिकोण से दिखता है। इनकी बहुमुखी आंतरिक इच्छा से उत्पन्न उत्साहपूर्ण और प्रभावशाली सौन्दर्यशास्त्र एक ऐसा सम्मोहन बनाता है मानो यह कुलकर्णी जी की पैतृक सम्पति हो।17
कृष्णजी कुलकर्णी के कार्य हमारी जीवन से जुड़ी हुयी विचारधारा को ऐसे प्रभावित करती है मानो हम पुराने काल में भ्रमण कर रहे हों। यह पिछली शताब्दी के भारतीय कलाकार की असाधारण उपलब्धि थी। यह वाकई कला के प्रति एक आस्थावान और अनुभव तथा प्रेम से ओत प्रोत समकालीन कला दृश्य था। बहुत से विवादस्पद और जटील प्राकृतिक चीजों पर कुलकर्णी जी ने अपने रंगो का ऐसा जादू चढ़ाया कि उन चीजों का महत्व बढ़ गया।18 बढ़ेरा आर्ट गैलरी की सूची पुस्तिका में किसी कलाविद् ने लिखा है- “His most singal contribution to the world of modern art is colour which
even reaches to greater hights. It is rarely visible in the contmeporary art of
Asian subcontinent”.19
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( To Know More :
Krishnajee Shamrao Kulkarni (1918-1994) and Faculty of Visual Arts in Banaras Hindu University.
संदर्भ ग्रन्थ सूचीः-
1. 1. Moti
Chandra, "Gita Govinda" , Portfolio
of Garhwal Paintings, Lalit kala Academy, New Delhi.
2. 2. के0एस0 कुलकर्णी, “संक्षिप्त जीवन वृत्त व नियुक्ति आवेदन पत्र“, (काशी हिन्दू विश्वविद्यालय से साभार), 1966
3. 3. 1.
O.P.
Shrma, "Contribution of Prof. K.S. Kulkarni" Kala Traimashik. No. 23, UPSLKA, Lucknow, 1985-86, pp. 12
2.
A.S.
Raman. "K.S. Kulkarni" Contemporary Art Series, L.K.A. New Delhi-1988
(No Pagination)
3.
Ibid.
4.
Sankho
Chaudhori, "Kulkarni : My Impression" Kala Traimashik No. 23, UPSLKA, Lucknow, 1985-86, pp. 6
5. Manohar
Kaul, " Introduction", Kala
Traimasik,No. 23, p. 16
6. Shankho
Chaudhary, "Kulkarni: My Impression", Kala Traimasik, No.23, p. 7
7. Krishna
Chaitanya, "Certain Rise on Cantemporary Scene", A History of Indian Painting: The Modern Period, Abhinav Pub., New
Delhi,1994, p. 262
8. K.
S. Kulkarni, "Prof. Kulkarni's view: Modernity in Art", Kala Traimasik, No.23, 1985-86, p. 21
9. J.
Swaminathan, "K. S. Kulkarni: A Sage Artist”, Exhibition Catalogue, April. 19th to 30th ,
1961, Kumar Gallery, New Delhi
10.
http://www.invaluable.com/auction-lot/krishna-shamrao-kulkarni-1916-1994-1-c-aae19fe680
11.
Ibid
12.
Jaya appasami, "K. S. Kulkarni: A
Long Side", Exhibition Catalogue, Mar. 23th to 30th ,
1965, Triveni Kala Sangam, New Delhi,
13.
Ibid
14.
Kaul, op.cit, p. 17
15.
Ibid,
16.
Ibid,
17.
Prof.
K. S. Kulkarni, "Painting on Glass: Geeta Govinda", Exhibition Catalogue, Nov. 28th
to Dec. 2nd 1988, Vadhera Art Gallery, New Delhi
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