कला समालोचना चित्र के गुण एवं दोष। Art Criticism and Merit & Demerit of ...

कला समालोचना चित्र के गुण एवं दोष। 

Art Criticism and Merit & Demerit of Paintings
as per Old Indian Texts.


कला समालोचना या कला समीक्षा कैसे कि जाती है. कौन व्यक्ति कला समीक्षा करने में समर्थ है. कला समीक्षा के लिए किन सिद्धांतो को जानना आवश्यक है. भारतीय और पश्चिमी देशो में कला समीक्षा के क्या मायने हैं,- इन सब प्रश्नों का हल आप इस लेख के द्वारा जानेंगे. आप सभी हमारे विडियो लेक्चर को सुन कर इसके नोट्स बना सकते हैं या लगातार सुन कर याद भी कर सकेंगे. 

अनेक कला समीक्षकों, मनीषियों तथा चिंतनशील कला इतिहासकारों ने विभिन्न कला शैलियों का अनुसरण करने वाले या प्रयोगवादी कलाकारों की कृतियों के बारे में समय-समय पर अलग अलग टिप्पणी दी हैं। समाज में कलाकृतियों के आलोचना के  लिए पहले कलाकार और कला प्रेमी होते थे उनकी जगह अब कला_ बाजार ने ले ली है। पहले कलाकार चाहता था कि लोग उसकी प्रदर्शनियों में आये उसके कार्य को देखे, उसकी सराहना करें, आलोचना करे। लेकिन आज कलाकार केवल बाजार के लिये कार्य करते हैं। गम्भीर कला समीक्षा समाप्त हो गयी है। अतः ऐसे विचार भी कलाकारों में है कि कला के क्षेत्र के विकास में गम्भीरता लानी है तो कला समीक्षा या स्वस्थ समालोचना को पुनः स्थापित करना होगा।

कला समीक्षा या कला _समालोचना  विडियो देखने के लिए यहाँ क्लिक करें 



कॉलरिज का यह मत भी हमें ध्यान में रखना चाहिए कि "सच्ची कलाकृति तो वह है जिसमें पाठक निरी यान्त्रिक प्रक्रिया से या मंज़िल के कुतूहल से परिचालित होकर न चले वरन् रचना के रसग्रहण की यात्रा में पग-पग पर वह आनन्दास्वाद लेता चले"।

क्लाइव बेल अपनी ‘कला” नामक पुस्तक में कहते हैं कि "समाज कलाकार को प्रत्यक्ष रूप से, अत: कला को अप्रत्यक्ष रूप से प्रभावित करता है… विश्व के सब कलावंत याचक बनें, क्योंकि कला और धर्म को पेशा नहीं बनाया जा सकता। पेशा बनाकर उन्हें नष्ट अवश्य किया जा सकता है। सच्चे कलाकार कला को पेशा इसलिए नहीं बनाते कि वे रचना करने के लिए जीते हैं, जीने के लिए रचना नहीं करते"। 


क्लाइव बेल का कथन आज के दौर में प्रासंगिक नहीं है क्यूंकि कला महाविद्यालयों में समय नष्ट कर चुके कलाकारों को सामाजिक प्रश्रय और सामाजिक सुरक्षा नहीं है जैसा कि ऐतिहासिक विवरणों.से ज्ञात होता है. आज का कलाकार स्वयं पर आश्रित है जो अपनी दैनिंदिन आवश्यकताओं कि पूर्ति के लिए कला को व्यवसाय के रूप में अपना चूका है. 
जैसा कि विडियो/ लेख में आपने जाना कि प्राचीन भारतीय ग्रंथों में कला समालोचना के अनेक सन्दर्भ हैं. इनका सकारात्मक पक्ष कला निर्माण कि दिशा में नव प्रयोग का अवसर देता है. आपने यह भी जाना कि आधुनिक काल में कला समीक्षा का क्या पैमाना रहा. 
उम्मीद है आपको ये लेख आपके पाठ्यक्रम के अनुरूप है. अपने कमेन्ट के द्वारा हमें अवश्य सूचित करे.

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