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Fine Art Tutorial
By Shashi Kant Nag
Welcome to Fine Art Tutorials
Explore the world of fine arts with Dr. Shashi Kant Nag. Whether you are a beginner or an experienced artist, our tutorials are designed to inspire and guide you in your artistic journey.
कला एवं शिल्प महाविद्यालय, लखनऊ - सन 1854 अंग्रेजी हुकूमत ने कला को बढ़ावा देने के लिए देश को पांच ज़ोन में बांट कर पांच शहरों चेन्नई,लाहौर(अब पाकिस्तान में),मुंबई, लखनऊ और कोलकाता में क्राफ्ट डिजाइन सेंटर स्थापित किये गए थे। यह विद्यालय 1 नवंबर, 1892 को औद्योगिक डिजाइन स्कूल के रूप में स्थापित किया गया था। शुरू में विंगफील्ड मंज़िल में स्थित रही फिर वह अमीनाबाद में और बाद में बांस मंडी में चली गई। सन् 1907 में एक औद्योगिक कॉन्फ्रेंस में प्रदेश में डिजाइन स्कूल की आवश्यकता पर विशेष रूप से विचार हुआ। 1909 में एक निर्माण का कार्य शुरू हुआ। फिर इस स्कूल का उद्घाटन 1911 में हुआ। नैथेलियन हर्ड प्रथम अंग्रेज प्राचार्य नियुक्त हुए । 1917 में इस स्कूल का नाम बदलकर राजकीय कला महाविद्यालय कर दिया गया। जिसमे से यह कॉलेज उत्तर भारतीय केंद्र के रूप मे शुरू हुआ। 60 के दशक में इसे आर्टस कॉलेज में तब्दील हुआ। वर्ष 1973 में यह आर्ट्स कॉलेज लखनऊ विश्वविद्यालय में विलय हुआ। आज यह इमारत 111 वर्ष पुरानी है। इतना बड़ा संकाय पूरे हिंदुस्तान में कहीं नहीं ह...
History of pastel colour painting पेस्टल चित्रण का इतिहास
How developed pastel colour paintings and it's kinds.
पेस्टल चित्रण का इतिहास एवं इसके भेद
पेस्टल कलर
कलाभिव्यक्ति हेतु प्रयुक्त रंजकों से तैयार एक माध्यम के रूप में हम पेस्टल कलर को जानते हैं. यह नाम उत्तर लैटिन शब्द pastellus से लिया गया जिसका अर्थ है पेस्ट. कलाकारों ने इसे पाउडर पिगमेंट यानि रंग्चुर्ण और गोंद (अरबी) के बंधक के साथ मिश्रित कर तैयार किया. कलाकारों ने मूल रंग से नरम रंग तैयार करने के लिए इसमे खड़िया, चौक, या पाइप मिटटी को मिश्रित किया.
इससे मूल रंग की नर्म रंगत प्राप्त हुई! ऐसा कहा जाता है कि उच्च पुनर्जागरण काल के विख्यात कलाकार लियोनार्डो द विंची 1452 से 1519 पे स्टल माध्यम में कार्य करने वाले कलाकारों में एक थे! पेस्टल का निर्माण 15 वीं शताब्दी में हुआ ! लियोनार्डो द विंची ने 1499 में मिलान में फ्रांसीसी कलाकार जीन पेरिअल से इसे सीखा था! पेस्टल कला 16वीं शताब्दी के कलाकारों द्वारा नियमित अभ्यास चित्र बनाने के लिए उपयोग किया जाता था विशेषत: फेडरीको बारोकी नामक कलाकार ने ऐसा किया।
रोकोको शैली के कलाकारों में इसका प्रचलन देखा गया. सन 1662 ईस्वी में फ्रांसीसी शब्द पेस्टल इस माध्यम के लिए प्रचलित हुआ और 17वीं से 18 वीं शताब्दी तक यह माध्यम चित्रकला और डिजाइन आदि के क्षेत्र में फैशन परस्तों का रंग बन गया. इसका प्रचलन तेजी से होने लगा। फ्रांस में इस रंग माध्यम को राजनैतिक और सामाजिक व्यवस्था एशियन रेगिमें से जोड़कर देखा गया। फ्रांसीसी क्रांति के कारण 1789 तक में या फैशन समाप्त हो गया।
पुनः दो शताब्दियों के बाद 1920 के दौरान संयुक्त राज्य अमेरिका में पेस्टल प्रकृति पुनर्जीवित हो गई ऐसा कहा गया कि इस माध्यम के कोमल तान शांति सुख बोधक और अवसाद से मुक्त करने वाला है सुविख्यात लेखक एफ. एस्कॉर्ट फिट्ज़गेराल्ड ने वेस्टर्न फैशन कॉल को अपने नोबेल द ग्रेट गेट्सबाइ में एक श्रेष्ठ काल के रूप में प्रतिष्ठा दी है। भारत में भी इसी समय में इसका प्रचलन हुआ,
पेस्टल वस्तुतः रंग चूर्ण और बंधक या गोंद के मिश्रण से तैयार पेंसिल नुमा छड़ी के आकार का एक रंग माध्यम है. यह रंग चूर्ण या पिगमेंट उन्हीं रंगों के समान होता है जो तेल रंग में या अन्य रंगों में प्रयोग होता है. पेस्टल की छड़े पाउडर पिगमेंट और बाइंडर की मिश्रित रूप होती हैं. प्रत्येक पेस्टल की छड या तिल्ली रंग चूर्ण के संयोजन उसके चरित्र तथा गोंद के प्रकार और मात्रा के अनुसार अलग-अलग प्रभाव उत्पन्न करती हैं.
विभिन्न निर्माता कंपनियों के अनुसार भी इनके प्रभाव में अंतर होता है. ऐतिहासिक रूप से सूखे पिस्टल में अरेबिक ब्लू या अरबी गोंद और ट्रगास कैंथ गोंद का प्रयोग होता रहा है किंतु बीसवीं शताब्दी में मिथाइल सैलूलोज का प्रयोग बाइंडर या बंधक के रूप में रंगों के लिए किया गया । पेस्टल की छड़ों में अक्षर चौक या जिप्सम घटक मौजूद होता है ।पिस्टल कठोर और नरम की कई श्रेणियों में बनते हैं तथा इसकी क्षणों को कागज से लपेट दिया जाता है। कुछ कंपनियां पेपर की निर्भरता को छोड़ने तथा कठोर धार बनाने के लिए प्यूमिस बाइंडर का उपयोग करते हैं।
पेस्टल मुख्यतः दो प्रकार के होते हैं-
1. ड्राई पेस्टल जिसे सूखा पेस्टल भी कहते हैं
2. ऑयल पेस्टल आयल माध्यम के पेस्टल
1. ड्राई पेस्टल मीडिया के भी कई भेद हैं.
अ. सॉफ्ट पेस्टल जिसे हिंदी में मृदु पेस्टल कहते हैं/ यह पेस्टल का सबसे व्यापक स्तर पर इस्तेमाल किया जाने वाला रूप है. इसके स्टिक में बंधक की मात्रा कम होती है. इसके द्वारा रेखांकन को आसानी से बनाया और मिश्रित किया जा सकता है. मृदु या नरम पिस्टल के तैयार किए गए चित्र को सुरक्षित करने की विशेष आवश्यकता होती है. इसे या तो दो स्तरों की कांच की परत के मध्य में रखकर सुरक्षित रखते हैं या रंगों को सतह पर फिक्स होने के गुणों से युक्त फिक्सेटिव की स्प्रे करते हैं. हालांकि स्प्रे फिक्सेटिव के प्रयोग से रंग और चित्र प्रभावित होते हैं. अतः फिक्सेटिव के बाद दोबारा फिनिशिंग करना पड़ता है. सफेद चौक के उपयोग से हल्के और प्रकाशित रंगों की चमक को दिखाते हैं।
ब. पैन पेस्टल- यह फ्लाइट कंपैक्ट कुछ मेकअप सामान के साथ कम से कम बाइंडर का प्रयोग कर तैयार होते हैं इसे विशेष निरम माइक्रोप्रो स्पंज जैसे उपकरण की सहायता से प्रयोग करते हैं 21वीं सदी के अविष्कार के रूप में पेन पिस्टल का उपयोग नरम एवं कठोर पिस्टल के साथ किया जाता है।
स. कठोर पिस्टल इस रंग में बाइंडिया बंधक की मात्रा अधिक होती है इससे साफ ड्राइंग बनाने में तथा बारीक विवरण यादी बनाने में सहायता होती है इसका इस्तेमाल रूपरेखा तैयार करने और डिटेल विवरण अभिप्राय बनाने हेतु किया जाता है हालांकि यह रंग कम शानदार होता है किंतु इसका प्रभाव भी मजेदार है इसकी उपलब्धता बहुत कम है।
द. पेस्टल पेंसिल- यह पिस्टल लीड के साथ निर्मित पेंसिल है जो विवरण आदि बनाने में सहयोगी होता है उपयोगी होता है ड्राई पेस्टल के अलावा निर्माण के दृष्टिकोण से तैलीय बंधक के प्रयोग से ऑयल पेस्टल निर्मित किया गया
2. आयल माध्यम के पेस्टल
ऑयल पेस्टल में नरम मक्खन युक्त स्थिरता और सघनता के प्रभाव वाले रंग होते हैं या कागज या चित्र धरातल के खुरदरी सतह को भरता है इसे तारपीन तेल की सहायता से नरम कर चित्र तथा पर फैलाया भी जा सकता है परस्पर वितरित करने में यद्यपि या कठिन होता है फिर भी सॉफ्ट ड्राइव पिस्टल की तरह यह भी चित्रकारों के मध्य एक स्वीकृत और प्रचलित माध्य में अनेक चित्रकारों ने ऑयल पेस्टल के रूप में अपनी कलाकृतियों को रचा है।
प्रस्तुतकर्ता : डॉ शशि कान्त नाग, असिस्टेंट प्रो ललित कला, डॉ विभूति नारायण सिंह परिसर, गंगापुर, महात्मा गाँधी काशी विद्यापीठ, वाराणसी
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