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Abstract Beauty: Paintings by S. K. Nag in Oil and Acrylic

Three beautiful Paintings by S. K. Nag | Abstract Acrylic Painting on Canvas  | Home Decor Painting   Content: Dive into the mesmerizing world of abstract art with three stunning paintings by the renowned artist S. K. Nag . These works, created in oil and acrylic on canvas, showcase the artist's ability to blend emotion, color, and form into visually arresting masterpieces. 1. "Whirlscape,  Medium: Oil on Canvas,  Size: 38 cm x 48 cm, 2011 Description: "Whirlscape" captures the chaotic beauty of nature through swirling brushstrokes and an interplay of vibrant hues. The painting evokes a sense of motion, inviting viewers to immerse themselves in its dynamic energy. Shades of blue and green dominate the canvas, symbolizing harmony and transformation, while the burst of pink adds a touch of vibrancy, suggesting hope amidst chaos. Search Description: "Experience the dynamic beauty of 'Whirlscape,' an abstract oil painting by S. K. Nag. Explore thi...

कला और वैश्वीकरण Art and Globalisatiom

 वैश्वीकरण में कला         Art and Globalization

सौंदर्यशास्त्र

भारतीय कला का समुन्नत वैभव अपने ऐतिहासिकता एवं पौराणिक तथ्यों के साक्ष्य के आधार पर अत्यंत समृद्ध है । पौराणिक ग्रंथों में उद्धृत वाक्यांश "वसुधैव कुटुंबकम" से ही वैश्विक समग्रता का अनुभव होता है। इस विचारधारा के बीज से उत्पन्न कलात्मक धरोहरों में समस्त संसार के भिन्न-भिन्न कला रूपों का समन्वय दृष्टव्य होता है।

...With the revolution of Information Technology and  reformation of business world, "Globalisation" word is used in Art  terminology from 1991 .


वैश्वीकरण का शाब्दिक अर्थ स्थानीय या क्षेत्रीय वस्तुओं या घटनाओं के विश्व स्तर पर रूपांतरण की प्रक्रिया है। यह एक ऐसी व्यवस्था है जिसके द्वारा पुरे विश्व के लोग मिलकर एक समाज बनाते हैं तथा एक साथ कार्य करते हैं। 
वैश्वीकरण राष्ट्रीय सीमाओं और संस्कृतियों में उत्पादो, प्रौद्योगकी, सूचना और नौकरियों का प्रसार है।

इसका उद्देश्य न केवल अर्थव्यवस्था को मजबूत बनाना था बल्कि वैश्विक स्तर पर भारत को आर्थिक रूप में खड़ा करना था। वैश्वीकरण से गरीबी उन्मुलन, रोजगार में वृद्धि, श्रम में गुणवत्ता एवं अनेक क्षेत्रों में बेहतरी तक पररकल्पना की गई थी। 

कला व्यापार को समृद्ध करने के जैसे इस शब्द का बारंबार उपयोग कर पत्र-पत्रिकाओं अथवा समाचार माध्यमों के जरिए कला वस्तु को सामान्य जन तक पहुंचाने के ढेर से किया गया इसमें कलाकार विभिन्न प्रदेशों में जाकर अपने चित्रों की प्रदर्शनी लगाकर धन उपार्जन करने का भी ध्यान रखते हैं अब कलाकारों का उद्देश्य शांता सुखाय ना होकर प्रसिद्धि तथा धन उपार्जन हो गया था ग्लोबलाइजेशन के प्रभाव में कुछ विशेष चीजें तथ्य सामने आते हैं। 

  • वैश्वीकरण के संस्कृति पर प्रभाव
  • क्षेत्रिय संस्कृतियों से लोगों का उपभोक्तावादी संस्कृति की तरफ झुकाव (People from regional cultures lean towards consumerist culture)
  • वैश्विक प्रकृति की संस्कृति का उदय (Rise of culture of global Nature) 
  • पूूँजीवादी समाजों के अनुरूप सांस्कृतिक मॉडल का विस्तार (Expanding cultural models in line with societies )
  • सांस्कृतिक वैश्वीकरण के पररणामस्वरूप सांस्कृतिक विविधता का कम होना (Reduced 
  • cultural diversity as a result of cultural globalization)

 व्यवसायीकरण

 कुछ कलाकार अपने मार्केट को जीवित रखने के लिए हमेशा चर्चा में बने रहना चाहते हैं और बने रहते हैं इसके लिए तरह-तरह के प्रचारात्मक तरीके का इस्तेमाल भी वे करते हैं ।

ग्लोबलाइजेशन के कारण कला संसार में लाभ व हानि दोनों चीजें व्यापक हो गई है। 
कला के खरीदारों  को  भारत में बड़ौदा, मुंबई, दिल्ली इत्यादि जगहों पर कलाकृतियां मिल जाती है किंतु कोलकाता में कलाकृतियों की समालोचना तो अच्छी होती है किंतु वहां खरीदार बहुत नहीं होते।


 मार्केट के दुष्प्रभाव से कला संसार में अनुकृति चित्रण का प्रचलन बढ़ गया जिससे महत्वपूर्ण चित्रकारों की कृतियों की नकल भी बाजार में बहुतायत बिकने लगी। छापा कला में विकसित तकनीकी बदलावों के कारण भी यह और आसान हो गया।
 परंपरागत गैलरी वाले भी कला व्यवसाय के रूप में समय समय पर बदलाव तथा जोड़-तोड़ करते रहते हैं। 

ग्लोबलाइजेशन का दूसरा प्रभाव है- रहन-सहन के स्तर में बदलाव।

 स्वभावतः मनुष्य की आकांक्षा जैसे-जैसे बढ़ती है और धन उपार्जन बढ़ता है तब रहन-सहन के स्तर में भी बदलाव आने लगता है। धनिक होते-होते ये अपने दमित इच्छाओं की पूर्ति भी करने लगते हैं ।

वैसे ही कलाकार के जीवन स्तर में भी बदलाव आता है प्रथमतः प्रारंभिक स्थान तत्पश्चात अन्य प्रदेशों या विदेशों में वे अपना प्रसार करने लगते हैं। इसप्रकार की गतिविधियों से अब प्रतिस्पर्धा बढ़ने लगती है और प्रतिस्पर्धा बढ़ने से एक देश की कृतियां दूसरे देशों में भी प्रदर्शित होती है। इससे कलाकार लाभान्वित होते हैं । 
यह एक प्रश्न विचार करने योग्य है कि क्या प्राचीन कला में भी ये गुण थे या तत्कालीन कलाकारों में ऐसा नहीं था।

 वासुदेव शरण अग्रवाल की पुस्तक भारतीय कला के अध्याय जंबूद्वीप की कला में स्पष्ट सामने आता है कि जम्बुदीप के व्यापक क्षेत्र का संबंध उस समय स्थानीय iran-iraq मिश्र इजिप्ट इत्यादि जगह से था।  
जहां  की कला एक दूसरे से अंतरंगता रखती थी।  

मध्य एशिया मैं बौद्ध धर्म के अवशेष मिलते हैं। इसके पहले की संस्कृति में मिस्र के पिरामिड, मृत शरीर को संचित करना, मृत शरीर के साथ दैनंदिन सामग्री रखना, कई देशों की मृतक संबंधी संस्कार में साम्य मिलता है।

 शव दाह की परंपरा बुद्ध के साथ भी मिलता है। इजिप्ट में ममी बनाकर रखते हैं। भारत में भी शवदाह के उपरांत दैनिक जनजीवन की वस्तुएं दान की जाती है। सुमेरियन संस्कृति का भारत के साथ साम्य होने में कला का प्रचार भी देखते हैं।  सपक्ष संयुक्त घोड़े यह सब सुमेरियन कला की देन थी जो भारत में शिल्पो में भी दिखाई देते हैं । इस प्रकार प्रसार के लिए भी वाणिको के द्वारा कला वस्तु एक जगह से दूसरे जगह पर ले जाई गई।

 असीरियन संस्कृति में पंख युक्त घोड़े का प्रयोग मिलता है जो भारत, सुमेरिया आदि जगहों पर भी शिल्पो में प्रयोग किया गया। सांची स्तूप में यह अंकित है। सपक्ष पशुओं का वर्णन ऋग्वेद में भी मिलता है। शतपथ ब्राह्मण ग्रंथ में इसका वर्णन है।

अजंता के चित्र तथा मूर्तियों में भी इन पशुओं का अंकन है बाद के दिनों में उड़ीसा के मंदिरों में भी इस प्रकार के विलक्षण पशुओं का अंकन हुआ है। सिंह और मनुष्य के मेल से बनी आकृतियां भी यहां बनाई गई है।
 नर व्याल, शुकव्याल, मत्स्य व्याल इत्यादि इसके उदाहरण हैं। ऐसा अंकन ग्रीक देश में भी किया गया है दो दो सिर वाले पक्षी का अंकन बाइजेंटाइन कला में भी टेक्सटाइल में किया गया है । 



यह ग्लोबलाइजेशन के कारण ही संभव हो सका है अजंता में एक सिर और चार शरीर वाले मृग का अंकन है।  विभिन्न प्रतीक यथा वृक्ष पर्णकुंभ इत्यादि का अंकन विभिन्न जगहों में एक समान है। एकन्थस पौधे की पत्ती जिसे भटकटैया कहते हैं, यह ग्रीस में, भारत में, गंधार के प्रभाव से कोरिन्थ पिलर में भी मिलता है।

 आज के दिनों में ग्लोबलाइजेशन का अभूतपूर्व प्रभाव संपूर्ण मानव संस्कृति पर पड़ा है। किसी खास देश की कला परंपरा के रूप का पुन:उत्पादन कलाकार अपने कला अनुभव के साथ जोड़कर कलानिर्मिति कर रहे हैं। 

साथ ही सूचना क्रांति के अभूतपूर्व संसाधनों की उपलब्धता से लाभान्वित होकर कलाकार किसी भी देश में घटित होने वाली कलात्मक गतिविधियों में प्रतिभाग करने में सक्षम हो रहे हैं।

 ग्लोबलाइजेशन के प्रभाव

  एक देश में निर्मित कृति या कला रुप तत्काल प्रभाव से अन्य देशों में भी प्रचलित हो रही है और एक फैशन के रूप में विभिन्न देश के वासियों के द्वारा अपनाई जा रही है। ग्राफीति कला, मल्टीमीडिया आर्ट, परफॉर्मेंस, प्रतिस्थापन आदि कलाभिव्यक्ति रूप ग्लोबलाइज़ेशन की देन है।


अंतर्देशीय कला सम्मेलनों मे अनेक देशों के और विभिन्न विधाओं के कलाकार एकसाथ मिलकर अपनी कलाकृतियां उत्पादित और प्रदर्शित कर रहे हैं। अब कलाकार ग्लोबलाइज़ेशन के प्रभाव में स्वयं को ग्लोबल  सिटीजन मानने लगे हैं। ये भ्रमात्मक स्थिति ग्लोबलाइज़ेशन के दोष हैं। यधपि बहुराष्ट्रीय नागरिकता भी ग्लोबलाइज़ेशन का ही प्रभाव है।


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