How to make paper (history)-कागज का इतिहास, वसली क्या होता है।

Do You Know that How Paper came in the world.

क्या आप जानते हैं कि पेपर या कागज कैसे बनता है।

वसली किसे कहते हैं?  चित्रण हेतु वसली कैसे तैयार करते हैं?


कागज़ शब्द मिस्री भाषा के पेपाइरस (Papyrus) शब्द से बना है। अंग्रेजी में इसे पेपर (Paper) कहते हैं। प्राचीन मिस्र के लोग पेपाइरस नामक पौधे से एक प्रकार का कागज बनाते थे। यह एक ऐसा पतला पदार्थ है जिस पर लिखा जाता है, प्रिंट किया जाता है और पैकिंग में भी इसका काफी इस्तेमाल होता है। कागज बनाने के लिए सेल्यूलोज की जरुरत होती है।


चीन में कागज का निर्माण सबसे पहले त्साई लुन  (Tsai Lun) नाम के व्यक्ति ने सन 105 ई.  में किया। वह चीनी सम्राट का कृषि मंत्री था। 

 कागज़ निर्माण का  वास्तविक विकास 15वीं शताब्दी में यूरोप में हुआ। सन 1799 में लुईस राबर्ट (Lois Robert)ने कागज़ बनाने की मशीन बनाई। आजकल अधिकतर कागज़ लकड़ी से बनाया जाता है। यह लकड़ी चीड, यूकेलिप्टस, चिनार, भोजपत्र, अखरोट आदि के पेड़ों से प्राप्त की जाती है।

रुई सेल्यूलोज का अच्छा स्रोत है लेकिन इससे कागज नहीं बनाया जाता क्योंकि ये काफी महँगी होती है और मुख्य रूप से कपड़ा बनाने में काम आती है। कागज पेड़ों से, वनस्पतियों से बनता है।

कागज पेड़ों से क्यों बनता है  – 

सेल्यूलोज एक कार्बोहाइड्रेट है जो पौधों में पाया जाता है। इसी सेल्यूलोज के रेशों को मिलाकर एक पतली चद्दर का रूप देकर कागज बनाया जाता है।

सेल्यूलोज के रेशों में ही ये गुण पाया जाता है जो मिलकर एक पतली चद्दर का रूप ले सकते हैं इसलिए कागज सेल्यूलोज से ही बनाया जाता है और सेल्यूलोज पेड़ों से प्राप्त होता है। तो आपने जान लिया कि कागज पेड़ो से क्यों बनते हैं।

अब जानते हैं कि बनाने की प्रक्रिया क्या है) –
 

आजकल कागज बनाने के लिए निम्नलिखित वस्तुओं का उपयोग मुख्य रूप से होता है : चिथड़े, कागज की रद्दी, बाँस, विभिन्न पेड़ों की लकड़ी, जैसे स्प्रूस और चीड़, तथा विविध प्रकार की घास जैसे सबई और एस्पार्टो। हमारे देश में बाँस और सबई घास का उपयोग कागज बनाने में लिए मुख्य रूप से होता है।

    पूरी प्रक्रिया के कई अंग हैं :-


(1) सेल्यूलोस की लुगदी (pulp) बनाना,

 (2) लुगदी को विरंजित करना और इसके रेशों को आवश्यक अंश तक महीन और कोमल करना तथा

 (3) अंत में लुगदी को चद्दर के रूप में परिणत करना।

सबसे पहले, कारखानों में लकड़ी को छोटे-छोटे टुकड़ों में  काटकर बड़े-बड़े बरतनों में कुछ रासायनिक पदार्थों और पानी के साथ उबाला जाता है। उबालने के बाद यह लकडी  मुलायम गूदे में बदल जाती है। इसको हम लुगदी (Pulp) कहते हैं । लुगदी से अशुद्धियां दूर करने के लिए इसे छाना जाता है। 

इसके बाद कुछ रासायनिक  पदार्थों द्वारा इसका रंग उड़ाकर इसे सफेद बनाया जाता है। फिर इस लुगदी में चीनी मिट्टी और चाक मिला दी जाती है। और बनने वाली लुगदी में ब्लीच और केमिकल्स मिलाये जाते हैं। ऐसा करने से बनने वाले कागज़ की चिकनाहट बढ़ जाती है। इन सब पदार्थों के मिश्रण को ‘स्टफ' और 'स्टॉक' कहा जाता है। अब इस मिश्रण को एक मशीन में डाला जाता है, जिस पर बेल्ट के रूप में महीन तारों से बनी एक जाली चलती रहती है।

 इस जाली पर बारीकी से फैले मिश्रण में से पानी बाहर निकलने लगता है और लकड़ी के छोटे-छोटे रेशे पास-पास आने लगते हैं, जिनसे एक पतली परत बननी शुरू हो जाती है। अब इस परत को बड़े-बड़े रोलरों द्वारा दबाया जाता है, जिसमें रेशे और भी पास-पास आ जाते हैं, जो गीले कागज का रूप धारण कर लेते हैं। इसके बाद इसको भाप से गर्म रोलरों द्वारा सुखाया जाता है।

अंत में स्टील के बड़े-बड़े चिकने बेलनों के नीचे से गुजारकर इसपर चिकनाहट पैदा की जाती है। 

इस प्रकार से बने कागज़ के बड़े-बड़े रोल बना लिए जाते हैं। इन्हीं रोलों से कागज़ को इच्छानुसार आकार में काटकर बाजार में बिकने के लिए भेज दिया जाता है। | कुछ सस्ते किस्म का कागज गत्ते और जूट, चिथड़ों, रद्दी कागज़ और घास-फूस से भी बनाया जाता है। इन पदार्थों से भी कागज बनाने का वही तरीका है, जो पहले बताया गया है|

कागज को रिसायकल भी किया जा सकता है –  यह भी एक महत्वपूर्ण तथ्य है। कागज की ख़ासियत ये है कि इसे रिसाइकिल किया जा सकता है यानी पुराने कागज से नया कागज बनाया जा सकता है।


इतिहास के अनुसार पहला कागज कपड़ों के चिथड़ों से चीन में बना था। 

कपड़ों के चिथड़े और कागज़ की रद्दी में सेल्यूलोज बहुत अधिक मात्रा में मौजूद होता है, इसलिए इनसे कागज बनाना काफी आसान रहता है और इनसे बनने वाला कागज काफी अच्छा भी बनता है।भारत में लेखन एवं चित्रण कार्यों में कागज का सार्वजनिक प्रयोग १३ वीं सदी के पश्चात् ही देखा जाता है। मेवाड़ में भी इसी काल से ताड़पत्रों और उसके पश्चात् कागज पर चित्रण कार्य होने लगा था। कागज का निर्माण स्थानीय विधियों से मेवाड़ के गोसुंडा गाँव में बाँस एवं सण (सन) की लुग्दियों से किया जाता था।

 उसे धीसुण्डी कागज के नाम से बहीखातों के प्रयोग में लिया जाता था। चित्र- निर्माण हेतु इन्हीं कागजों को तह कर दूसरी तह मैदे की लेही (लेई) से चिपकाकर मोटा करने की पद्धति प्रचलित थी, इस विधि को कागज साठना कहते हैं।कालांतर में दोलताबादी एवं स्पेंनी कागजों का भी प्रचलन हुआ। इन कागजों पर सफेद रंग की जमीन बांधकर चित्र बनाये जाते थे। 

ये कागज बड़े- बड़े आकार के चित्रों हेतु निर्मित किये जाते थे। मेवाड़ में सुपासना चरियम (१४२3 ई.) का चित्र जो अपभ्रंश शैली में बना है, संपुट कागज के चित्रों का प्राचीनतम उदाहरण है

अब बात करते हैं हम बसली के बारे में।


चित्रकार सर्वप्रथम कई पतले कागज को वसली पर जमाकर चित्रण कार्य करता था। 
वसलि बनाने की विधि क्या थी, ये आप जानिए। मध्यकालीन लघुचित्र विशेष कर मुग़ल काल मे चित्रण हेतु इसका प्रयोग हुआ। वसली बनाने हेतु एक पाटिये पर देशी कागज की एक परत पर दूसरी परत, आटे की लेही से चिपकाकर बनाया जाता था। जितनें अधिक कागज जोड़े जाते थे, वसली उतनी ही मोटी बनती थी।

 यह पटरियाँ जैसी मोटी तक बनाई जाती थी। अब चित्रकार सर्वप्रथम कसरा करके अपने विचारों व विषयवस्तु को साकार रुप में अंकित करना शुरु कर देता था। उसकी साधना, चित्रण, विचार व कल्पनाएँ चित्र- संयोजन में विशेष प्रभाव रखती थी। उसका अंकन करके अक्षी-कागज पर जो हिरण की पतलीखाल से बनाया जाता था, रेखांकन कर लेता था।

 इसी का पुनःअंकन से साढ़े हुए कागज पर टिपाई करके हल्के रंग का रेखांकन कर दिया जाता था। 

तत्पश्चात् तीन बार सफेद रंग से पूरे चित्र- फलक पर अस्तर दिया जाता था। अस्तर देने के बाद सच्ची टिपाई (प्राथमिक रेखांकन) में मुख्य रेखाएँ एवं रंगों के संयोजन का कार्य पूरा कर लिया जाता था। अब घोंटी (पेपर वेट) जैसे किसी पारदर्शी पत्थर या हकीक पत्थर से घुटाई करके पूरी सतह पर चमक लाई जाती थी। अब आकृतियों में यथा अनुसार रंग भरा जाता था। रंग भरने की विधि गदकारी कही जाती थी। अब अंग- प्रत्यंग की बारीक रेखाओं के अंकन से विवरण बनाये जाते थे जिसे खुलाई कही जाती थी।

आधुनिक काल में कागज निर्माता कंपनीयों ने विज्ञानिक शोधकर्ताओं के सहयोग से अनेक प्रकार के अम्ल मुक्त कागज चित्रांकन हेतु बाजार में उपलब्ध कराए है । 

आज चित्रकार विभिन्न सतह प्रभाव या टेक्सचर युक्त कागज का प्रयोग कर विभिन्न रंग माध्यमों में कार्य कर रहे हैं। 
    जयपुर के एक उद्यमी विजेंद्र शेखावत और महिमा मेहरा, जो अब बिजनेस पार्टनर हैं, पहली दफा बेकार समझी जाने वाली हाथी लीद से कागज बनाया। भारत सरकार गोबर से हस्तनिर्मित कागज बनाने के लिए उद्योग लगाने हेतु प्रोत्साहन दे रही है।

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