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Mural Paintings of Sarnath Mulgandha Kutivihar Temple
Buddhist Paintings in India (Sarnath)
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वाराणसी से लगभग 10 किमी० दूर स्थित सारनाथ अपने ऐतिहासिक धरोहरों के साथ एक पर्यटक स्थल के रूप में विश्व-पटल पर स्थापित है। बौद्ध धर्मानुयायियों के लिये पवित्र व लोकप्रिय धार्मिक स्थल सारनाथ प्राचीन काल में इसीपत्तन, ऋषिपत्तन मृगदाय आदि अनेक नामों से जाना गया।1
बौद्ध धर्म के ऐतिहासिक स्तुप एवं मौर्य काल के भग्नावशेष इसके सांस्कृतिक वैभव की साक्षी हैं जिसने विभिन्न कालावधि में अनेकों विद्वानों, मनीषियों कों अपनी ज्ञान-पिपासा की तृप्ति के लिये आकर्षित किया। यद्यपि पाषाण-कला व स्थापत्य के कई नमुने यहां उत्खनन से प्राप्त हुये हैं जो मौर्य शासक अशोक (तीसरी शती ई० पू०) से लेकर गहड़वाल शासक गोविंदचन्द्र (1114-1154 ई०) की बौद्ध मतावलबीं रानी कुमारदेवी (लगभग बारहवीं शती ई०) तक की उन्नत कला-परंपरा को बयान करते हैं।2
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वर्तमान में मुख्य मंदिर के रूप में विख्यात आधुनिक मूलगंधकुटी विहार जीर्णाद्धार के उपरांत अपने अद्यतन स्वरूप में है जहां बौद्ध विषयक भित्तिचित्र प्राप्त होते हैं।
मंदिर की आंतरिक सज्जा
मंदिर की आंतरिक सज्जा के निमित्त बौद्ध विषयों पर आधारित चित्रों से भीतरी दीवारों को सुशोभीत किया गया है जो इस स्मारक का प्रमुख आकर्षण-केन्द्र हैं। जापान के चित्रकार कोसेत्सुनासु ने सन् 1932 से 1935 तक इन चित्रों को तैयार किया जिसमें भगवान बुद्ध के जीवन से संबन्धित घटनाओं पर आधारित चित्रों के दर्शन होते हैं।11 आधुनिक भारतीय कला के विकास के प्रारंभिक दिनों का साक्षी यह काल वास्तव में कला विषयक अध्ययन के कई सूत्रों को समेटे हुये है।
सारे देश में इस समय स्वतंत्रता-प्राप्ति की मुहीम जोरों पर थी और कई सारे रचनात्मक कार्य देश के विभिन्न भागों में हो रहे थे। बंगाल से प्रसारित कला की पुनरूत्थान शैली के प्रवर्तकों ने लगभग सारे देश में विभिन्न कला-महाविद्यालयों का नेतृत्व करते हुये अपनी देशज कलावृति के रचनात्मक प्रयोगों को प्रस्तुत किया था और अनेको कलाकारों ने निजी तथा सार्वजनिक संस्थाओं से प्राप्त अनुबंध पर उत्कृष्ट कलाकृतियों की रचना की थी।
अतः मूलगंधकुटी के आंतरिक भित्ति पर चित्रण के लिये बंगाल स्कूल के विख्यात चित्रकार नन्दलाल बोस को प्रथमतः आमंत्रित किया था। किन्तु बौद्ध धर्म के अनुयायी न होने के कारण से यह कार्य इन्हे नहीं दिया गया और अंततः जापानी चित्रकार कोसेत्सुनासु के द्वारा संपन्न हुआ।
मूलगंधकुटी-विहार के मुख्य मंडप में तीन ओर की दीवारों को चित्रों से आच्छादित किया गया है।
यह सभी चित्र कथ्यात्मक शैली में बने हैं और कलात्मक दृष्टि से बोधगया स्थित थाई मन्दिर में बने चित्रों के बनिष्पत दोयम दर्जे के हैं जबकि दोनों आधुनिक हैं। यद्यपि रैखिकता इन चित्रों का प्राण-तत्व है और रंगयोजना भी आकर्षक है तथापि पौवत्य आदर्शवत्ता के दृष्टिकोण से लयात्मकता का अभाव है। चित्रों के उपर चमक दिखाने के लिये वारणीस का प्रयोग किया गया है। बुद्ध के जीवन- प्रसंगो को उद्घाटित करते इन चित्रों की योजना निम्नलिखित कथा क्रम में है -
पूर्वी दीवार
1. पूर्वी दीवार के मध्य भाग में द्वार के उपर कुशीनगर में तथागत के महापरिनिर्वाण का दृश्य है।
2. पूर्वी दीवार पर दक्षिणी कोने के उपरी भाग में देवदत्त अजातशत्रु के साथ तथागत के विरूद्ध कान में कुछ कह रहे हैं।
3. इसके नीचे अछूत कन्या आयुष्मान आनंद को जल दे रही है। नीचे अंगुलीमाल को भगवान उपदेश दे रहे हैं।


5. दक्षिणी ओर उपरी भाग में पानी के लिये युद्ध करने को उद्धत शाक्य और कोलियों को उपदेश देने का दृश्य है।
6. उसके नीचे भिक्ष्ु संघ के साथ भगवान बुद्ध कपिलवस्तु में दिखलाये गये हैं। पिता शुद्धोदन और पुत्र राहुल भी चित्र में दर्शाये गये हैं।

पश्चिमी दीवार

1. दीवार के निचले भाग में राजा बिम्बसार को उपदेश देने का दृश्य है।
2. इस दीवार के दक्षिणी कोने में महाभिनिष्क्रमण का चित्र है।
3. उसके उत्तर की ओर उपर वाले दृश्य में सिद्धार्थ को सत्य की खोज में आलार कालाम से बातें करते हुये बनाया गया है।
4. नीचे सिद्धार्थ के पांचो साथी चित्रित हैं। इस चित्र के नीचे सुजाता के द्वारा सिद्धार्थ को खीर समर्पित करने का दृश्य अंकित है।
5. पश्चिमी दीवार के उत्तरी कोने में जेतवन विहार के निर्माण के लिये अनाथ पिण्डक को दान करने का दृश्य है।
6. इस दीवार के मध्य भाग में मार-विजय का दृश्य निर्मित है।
दक्षिणी दीवार
1. पश्चिमी कोने में उपर वाले चित्र में सिद्धार्थ को जम्बू वृक्ष के नीचे ध्यानमग्न बैठे हुये तथा महाराज शुद्धोदन को हल चलाते हुये बनाया गया है।
2. दक्षिणी दीवार के पूर्वी कोने में सबसे उपर वाले चित्र में दिखाया गया है कि तुषित भवन में सारी देव- मण्डली बोधीसत्व के हाथ जोड़कर खड़ी है और मर्त्यलोक में जन्म लेने के लिये उनसे प्रार्थना कर रही है।
3. उसके नीचे रानी महामाया का स्वप्न का दृश्य अंकित किया गया है।
4. दीवार के मध्य में विहार के मुख्य द्वार के उपर सिद्धार्थ के जन्म का दृश्य चित्रत है। साथ ही, सिद्धार्थ के जन्म की प्रसन्नता में दान बांटते हुये दृश्य को भी अंकित किया गया है।
5. इस चित्र के पश्चिम की ओर ऋषिगण सिद्धार्थ को देखते हुये चित्रित हैं।
उल्लेखित सभी चित्र विषयानुकूल हैं और वाराणसी की आधुनिक कला के परिप्रेक्ष्य में भित्ति-चित्रकला के प्रतिनिधि नमुने हैं।
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Swami Vivekanad's Painting with Textural Beauty Click Blue Link.
संदर्भ सूचिः.
1 शान्ति स्वरूप बौद्ध, सारनाथ, सम्यक प्रकाशन, नई दिल्ली, 2011ए पृ० 11
2 डॉ० कमल गिरि, मारूतिनंदन तिवारी एवं डॉ० विजय प्रकाश सिंह, काशी के मन्दिर और मूर्तियाँ, जिला संस्कृति समिति, वाराणसी, पृ० 94
3 शान्ति स्वरूप बौद्धए उपरोक्त उद्धृतए पृ० 83
4 डॉ०कमल गिरिए उपरोक्त उद्धृतए
5 शान्ति स्वरूप बौद्धए उपरोक्त उद्धृतए पृ० 81
6 वही, पृ० 67
7 वही, पृ० 68
8 मंदिर के बाहर शिलालेख पर उल्लेखित
9 शान्ति स्वरूप बौद्धए उपरोक्त उद्धृत, पृ० 68
10 वही, पृ 84ए 85
11 वही, पृ० 87
12 स्थान विशेष के शोध.सर्वेक्षण के अनुसार
छाया चित्र साभार.
Maciej Wojtkwiak, Anu and Sachin.
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