कला साहित्य और संस्कृति का नवोन्मेषी उत्सव और बनारस
नए बनारस की बदलती तस्वीर की साथ कला और साहित्य के बनारस लिटरेचर फेस्टिवल के दूसरे संस्करण का विश्वस्तरीय आयोजन वर्ष २०२४ में 10, 11 एवं 12 फ़रवरी को हुआ।
अनेक प्रकार के मंचीय आयोजनों के उद्घाटन के साथ प्रथम दिवस चित्रकला कार्यशाला का उद्घाटन प्रातः काल 11:00 बजे वरिष्ठ चित्रकार एस प्रणाम सिंह, विश्वप्रसिद्ध रेखांकन कलाकार श्री विजय सिंह, अजय उपासनी की उपस्थिति में विशिष्ट अतिथि डी आई जी, श्री ओ पी शर्मा के द्वारा फीता काट कर किया गया।
इसके साथ ही यूनियन बैंक ऑफ इंडिया के एफ जी एम, श्री गिरीश जोशी एवं आईयूसीटीई के निदेशक प्रो पी एन सिंह के द्वार चित्रप्रदर्शनी का उद्घाटन किया गया।
बनारस लिट् फेस्टिवल के संयोजक, श्री बृजेश सिंह, अध्यक्ष श्री दीपक मधोक, एवं उपाध्यक्ष श्री अशोक कपूर ने कलाकारों को शुभकामनाएं प्रेषित किया। एस प्रणाम सिंह ने रुद्राक्ष के मंच से कार्यशाला का बीज वक्तव्य प्रस्तुत किया। उद्घाटन के बाद त्रिदिवसीय चित्र कार्यशाला में शामिल चित्रकारों ने दूसरे दिन अपने चित्रों को क्रमश रचना शुरू किया। चित्रकर्त्री सुश्री संगीता मिश्रा ने गहरे रंगों में चित्र सृजन शुरू किया ।
इस वसंत उत्सव के पूर्व आगमन पर डॉ0 सुनील कुमार विश्वकर्मा जी ने बनारस की प्राचीन रामलीला के प्रसंग को उकेरा तो चित्रकार श्री संतोष कुमार तिवारी 'शांडिल्य' जी ने काशी के घाट को परिकल्पित किया।
अजय उपासनी ने घाट की जनजीवन को आत्मसात करते हुए अपने चित्र में मनुष्य की भूमिका को विशेष पहचान देने की कोशिश की है।
विख्यात कलाकार एस प्रणाम सिंह जी ने अपने चिर परिचित शैली में सौंदर्य की प्रतिमूर्ति 'घूँघट में बनारस कि नारी' को उकेरा। अनुभवजन्य वैशिष्ट्य के साथ कौशलपूर्ण तुलिका के प्रयोग से अभिव्यन्ज्नात्मक चित्र रचना इनकी विशेषता है ।
चित्रकार डॉक्टर शशि कांत नाग ने भगवान गणेश के द्वारा त्रिमूर्तियों की अर्चना करते हुए मनोरम चित्र संयोजन तैयार किया। चित्र को देखते हुए किसी प्रेक्षक ने इसे ट्रेडिशनल कहा'- अस्तुतः भारतीय लघुचित्र परम्परा का प्रभाव तो रहा ही, क्यूंकि इस समय राजस्थान के मेवर चित्रों का गहरा अध्ययन इनके द्वारा किया जा रहा था ।
वहीं काशी हिन्दू विश्वविद्यालय के महिला महाविद्यालय में कार्यरत डॉ0 सुनील कुमार सिंह कुशवाहा ने आध्यात्मिक सौंदर्य को प्रतिरूप किया।
शालिनी सिंह और डॉ० गीतिका, दोनों आयोजक मंडल की कार्यकारिणी के सदस्य के रूप में इस सम्पूर्ण आयोजन में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी। एप्लाइड आर्ट्स विधा विशेषज्ञ होने के नाते तमाम होर्डिंग बैनर अदि की डिजाईन का दायित्व डॉ गीतिका ने ही उठाया था जबकि कला प्रदर्शनी और कार्यर्शाला के लिए शालिनी ने तकनिकी प्रबंधन किया । इन दोनों ने भी कार्यशाला में भाव्जनित अप्रतिम चित्रों की रचना की।
शालिनी ने प्रकृति के अवयवों को रंगों के अभिव्यंजनात्मक प्रस्तुति से साकार किया, वहीं गीतिका ने अपने चित्र में सृजनात्मक ऊर्जा को प्रतिबिंबित करते हुए वाराणसी घाट के जनजीवन के दृश्यात्मक अनुभवों को रूपायित किया। प्राचीन मुग़ल शैली के वंशानुगत पीढ़ी के कलाकार श्री गोपाल जी ने इस कार्यशाला में जलरंग माध्यम में अनेक प्रयोगात्मक चित्र प्रस्तुति किया।
चित्र प्रदर्शनी में प्रो सरोज रानी, जया खन्ना, डॉ पिंकी त्रिपाठी, प्रमोद राय, प्रो विजय सिंह आदि की कृतियों को विशेष सराहना प्राप्त हुई।
श्री विजेंदर महली के द्वारा प्रस्तुत पॉटरी कला के स्टाल पर इनके द्वारा हस्तनिर्मित सिरेमिक एवं राकू शिल्प ने बनारस में स्वतंत्र रूप में स्टूडियो पॉटरी को पुनर्जीवित करने का प्रयास के रूप में देखा गया। इनकी कृतियों ने सिरेमिक शिल्प के क्षेत्र की खामोशी को तोडा है ।
कार्यशाला में निर्मित इन चित्रों को वाराणसी कला और साहित्य उत्सव के तीसरे दिन जनता के समक्ष प्रस्तुत किया गया तदोपरांत आयोजन समिति के संग्रह में रख ली गयी। कार्यशाला के संयोजक और प्रदर्शनी के क्यूरेटर राजेश कुमार ने अपनी विलक्षण कार्यकुशलता से इस उत्सव के अन्य माननीय अतिथियों को कला प्रदर्शनी वीथिका की ओर लगातार आकर्षित करते रहे एवं चित्रकारों की कृतियां दिखाते दिखे।
तीसरे दिवस के सांध्यकालीन सत्र में बनारस की समकालीन कला के संदर्भ परिचर्चा हुई। कला परिचर्चा सत्र के दौरान मंच पर क्रमशः चित्रकार सुरेश के नायर, डॉ सुनील कुमार सिंह कुशवाहा, डॉ सुनील कुमार विश्वकर्मा, प्रो0 प्रदोष मिश्रा, प्रो0 मंजुला चतुर्वेदी, एस प्रणाम सिंह और डॉ शशि कान्त नाग शुशोभित हुए।
मुख्य वक्ता के रूप में प्रो0 प्रदोष मिश्रा, कला इतिहास विभाग, काशी हिन्दू विश्वविद्यालय ने अत्यंत सारगर्भित और तथ्यात्मक जानकारी साझा किया। इन्होंने काशी की समकालीन कला के विकास की पृष्ठभूमि में दो महत्वपूर्ण घटनाओ का जिक्र किया जो वस्तुतः सम्पूर्ण भारत की समकालीन एवं आधुनिक कला की पृष्ठभूमि के मुख्य घटक रहे हैं। पहली घटना में में इन्होंने कलाविद आनंद कुमार स्वामी के द्वारा इलाहाबाद में आयोजित किए गए चित्रकला प्रदर्शनी का उल्लेख किया तथा दूसरी महत्वपूर्ण घटना कोलकाता में 1920-21 में जर्मनी के कलाकारों के द्वारा बाउ हाउस प्रदर्शनी के रूप में घटित हुई थी। पार्थ मित्र की पुस्तक में भी इस प्रदर्शनी को उल्लेखित किया गया है। वास्तव में अनेक कला विद्वानों के मतानुसार कोलकाता में आयोजित बाउ हाउस चित्र प्रदर्शनी ने भारत में आधुनिक कला के प्रति एक नवीन सौंदर्य चेतना का संचार किया था जिससे अनेक कलाकार प्रभावित हुए थे। दूसरी वक्ता प्रोफेसर मंजुला चतुर्वेदी जी रही जिनके वक्तव्य बनारस के लोक कलाकारों के इर्द-गिर्द सिमटा रहा जिनमें देशज कला भाषा की स्थापना के लिए प्रयत्नशील परंपरावादी कलाकारों के प्रयासों की सराहना की गई। वरिष्ठ कलाकार एस प्रणाम सिंह ने काशी में कला दीर्घाओं की शून्यता को विशेष रेखांकित किया। समकालीन परिदृश्य में काशी की कला का विश्लेषण किया जाएगा।
कार्यशाला और चित्र प्रदर्शनी में शामिल चित्रकार अजय उपासनी ने बनारस लिट् फेस्टिवल के सन्दर्भ में कुछ इसप्रकार अपने उद्गार व्यक्त किया - "काशी की धरती पर व्यक्तिगत स्तर पर साहित्य , कला -संस्कृति , संगीत, संवाद , नाट्य कला, परिचर्चा और बहुत कुछ का महा- आयोजन मेरे संज्ञान में प्रथम बार हुआ है यद्यपि यह इसका द्वितीय संस्करण है परंतु गत वर्ष की अपेक्षा यह और बहुत आकर्षक, प्रकल्पनीय ,सार्थक और वर्तमान संदर्भ में अति महत्वपूर्ण तरीके से प्रस्तुत हुआ है । सर्वप्रथम मैं श्री बृजेश सिंह जी के साहस की प्रशंसा करूंगा, जिन्होंने कैसे कार्यक्रम की परिकल्पना की , जिसमें वह सभी सामग्री हो जो सभी वर्ग के लिए हो, जिसके द्वारा इंसान की वैचारिक भूख, आनंद की पराकाष्ठा और सभी कार्यक्रम की जीवंतता को दृष्टिगत करते हुए एक सर्वोत्कृष्ट प्रस्तुति हो । बिना किसी सरकारी सहायता के (जैसा मुझे ज्ञात है ) इतने बड़े स्तर पर और सिर्फ कुछ दिनों में हर क्षेत्र के प्रमुख हस्तियों को इकट्ठा करना और उनके कार्यक्रम की रूपरेखा बिना किसी रूकावट ,समस्या या अन्य विकट परिस्थितियों को दरकिनार करते हुए धरातल पर उतारना , बिना ईश्वरीय कृपा के असंभव है। निश्चित रूप से इस महा आयोजन में उनके साथ बनारस की प्रमुख हस्तियां यथा श्री दीपक मधोक ,श्री अशोक कपूर और अन्य गणमान्य व्यक्तित्व भी शामिल थे ,परंतु इतनी बड़ी टीम को लेकर साथ चलना और सफलतापूर्वक बिना किसी व्यवधान और त्रुटि के सरकारी तंत्र को भी साधना , जहां उनकी आवश्यकता थी, यह बहुत ही महत्वपूर्ण है। कला आयोजन में श्री राजेश कुमार सिंह , श्रीमती शालिनी सिंह और श्रीमती गीतिका जी की तिगड़ी ने संपूर्ण आयोजन में चार चांद लगा दिया।''
अत्यंत सरल ह्रदय के स्वामी आयोजन सचिव श्री बृजेश सिंह; जो स्वयं राजकीय सेवा अधिकारी हैं इनकी जीतनी प्रशंसा कि जाये कम प्रतीत होती है। विनम्रता कि मूर्ति बन कर अतिसंयम के साथ इन्होने इस विराट आयोजन को जनसहयोग से सफल किया । आयोजन के उपरांत सभी कलाकारों के प्रति आभार व्यक्त करते हुए इन्होने व्हात्सप्प group में लिखा-
"आप सभी चित्रकार बन्धुओं को राम-राम। एस प्रणाम सर, विजय सर ,वेद प्रकाश सर, ,सुनील विश्वकर्मा सर, प्रदोष सर , सरोज मैम, मंजुला चतुर्वेदी मैम,गोपाल सर, सुनील कुशवाहा सर, सुरेश नैयर सर, अजय उपासनी सर, शशि कांत नाग सर , संतोष शांडिल्य सर, बिजेंद्र सर, प्रमोद सर, जया खन्ना मैम, गीतिका मैम, शालिनी मैम, संगीता मैम, डॉ.पिंकी मैम , आप सभी 10-11,12 फरवरी को रुद्राक्ष इंटरनेशनल कोआपरेशन एण्ड कन्वेंशन सेंटर में आयोजित अंतरराष्ट्रीय चित्रकला प्रदर्शनी एवं वर्कशॉप का हिस्सा बने, इसके लिए हृदय से धन्यवाद।
राजेश जी, इस आयोजन के आर्ट क्यूरेटर एवं आयोजक मण्डल के अभिन्न अंग, अजय उपासनी सर, डाॅ गीतिका, शालिनी के अथक प्रयासों से ही यह प्रदर्शनी एवं वर्कशॉप सफल हो पाया आप सभी की जितनी प्रशंसा की जाए उतनी कम है।प्रोफेसर सुनील विश्वकर्मा सर का सहयोग अद्वितीय रहा ,सर आप हम बच्चों पर अपना स्नेह ऐसे ही बनाए रखेंगे। प्रदोष सर, मंजुला चतुर्वेदी मैम ,एस प्रणाम सर ,सुनील सर का "समकालीन कला पर विमर्श " ज्ञान वर्धक रहा। एक बार पुनः आप सभी को हृदय से धन्यवाद एवं नमन। जल्द ही फिर मिलेंगे।
आपका अपना बृजेश
नोट - यह लेख कला विषयक शोध हेतु प्रयोग किया जा सकता है ।
सन्दर्भ प्रारूप :- Shashi Kant Nag, "Colour Pallete of Varanasi at Banaras Lit Festival Session-2, 2024", artistshashikantnag's blog: Fine Art Tutorials, Published on 16th Feb. 2024 AND PASTE url https://artistsknag.blogspot.com/2024/02/colour-pallete-of-varanasi-at-banaras.html
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welcome. what can i do for you?